देश और दुनिया में सैकड़ों किस्म की वैक्सीन बनी है। अनेक असाध्य और जानलेवा बीमारियों से लड़ने के लिए वैक्सीन बनी है और बचपन से लोगों को लगनी शुरू हो जाती हैं। लेकिन इतिहास में कभी किसी वैक्सीन को लेकर ऐसा माहौल नहीं बना, जैसा कोरोना की वैक्सीन को लेकर बना है। लेकिन सवाल है कि इतने हल्ले के बाद भी वैक्सीन से किस बात की गारंटी मिल रही है। असल में वैक्सीन से किसी बात की गारंटी नहीं मिल रही है।
बिहार में या दूसरे कई राज्यों में दवा के दुकानदार लोगों को ताकत की नकली दवा देते हुए यह नसीहत देते थे कि रोज दूध पीना है और अंडा खाना है। ताकत दूध और अंडे से आनी होती थी, सीरप तो नकली होती थी। वहीं स्थिति इस महान वैक्सीन की है। वैक्सीन की डोज के साथ यह नसीहत दी जा रही है कि मास्क लगाए रखना है, दो गज की दूरी रखनी है, हाथ धोते रहना है या सैनिटाइज करते रहना है। जब तक वैक्सीन नहीं थी तब तक भी इसी उपाय से लोग बचते रहे थे और वैक्सीन के बाद भी ये ही उपाय करने हैं तो वैक्सीन का क्या मतलब है?
इन्हीं उपायों से देश की 99 फीसदी आबादी को कोरोना नहीं हुआ और जिन एक फीसदी के करीब लोगों को हुआ उनमें से 99 फीसदी के करीब ठीक हो गए। तभी सवाल है कि ऐसी वैक्सीन की क्या जरूरत है? उसके लिए इतना हल्ला मचाने की क्या जरूरत है कि वैक्सीन सीरम इंस्टीच्यूट से निकल रही है, नारियल तोड़ा जा रहा है, हवाईजहाज उड़ गया, जहाज उतर गया, जेड सुरक्षा में वैक्सीन की गाड़ी निकली आदि आदि? वैक्सीन की पहली डोज लगाने के 28 दिन बाद दूसरी डोज लगानी है और उसके 14 दिन के बाद इससे सुरक्षा मिलेगी।
यानी पहले 42 दिन तो कोई सुरक्षा नहीं है। पूरी डोज लगाने के 14 बाद तक कोरोना का संक्रमण हो सकता है। उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि संक्रमण नहीं होगा क्योंकि कोई भी वैक्सीन सौ फीसदी सुरक्षा नहीं दे रही है। इसलिए मास्क लगाने और दूरी बनाए रखने की नसीहत भी दी जा रही है। जिनको वैक्सीन लगाई जा रही है और संयोग से 42 दिन के अंदर कोरोना नहीं होता है और उसके बाद भी बचे हुए हैं तो वह संयोग होगा और यह संयोग कब तक रहेगा कहा नहीं जा सकता है।