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ओस चाट कर प्यास बुझाने का प्रयास

ByNI Political,
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ओस चाट कर प्यास बुझाने का प्रयास
पुरानी कहावत है कि ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती। बड़े लोग इस पर अमल करते हैं। एक दूसरी कहावत है कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, समाज के कम आय वाले या मध्यवर्गीय लोग इस पर अमल करते हैं। भारत सरकार भी ऐसा लग रहा है कि बूंद बूंद से घड़ा भरने का प्रयास कर रही है। सरकार को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लाखों करोड़ रुपए की जरूरत है। उसने एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का एक पैकेज दिया है, जो देश की जीडीपी के एक फीसदी के करीब है। इस तरह के और कई पैकेज आने हैं। स्वास्थ्य के लिए 15 हजार करोड़ रुपए के प्रावधान में और मोटी रकम जोड़ी जानी है। उद्योग व कारोबारी जगत के लिए पैकेज आना है और राज्यों को भी पैकेज दिया जाना है। कहा जा रहा है कि जीडीपी के पांच फीसदी यानी आठ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का का राहत पैकेज हो सकता है। पर सरकार वेतन कटौती, पीएम-केयर्स फंड के चंदे, सांसद निधि रोकने जैसे उपायों से पैसा जुटाने में लगी है। सांसद निधि में हर साल सांसदों को सात हजार करोड़ रुपए मिलते हैं। अगर दो साल तक सांसदों को पैसा नहीं देंगे तो सरकार की संचित निधि में 14 हजार करोड़ रुपया जमा होगा। वेतन कटौती आदि से सौ-दो सौ करोड़ रुपए बच जाएंगे। पीएम-केयर्स फंड में भी 20-25 हजार करोड़ रुपए का चंदा आ जाएगा। इन छोटे-छोटे उपायों से यह भी जाहिर हो रहा है कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं और वह वित्तीय घाटे की चिंता में है। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत घटने के बावजूद देश में महंगा पेट्रोल-डीजल बेच कर 20 लाख करोड़ रुपए कमाए हैं। अगर ऐसा है तो इसी पैसे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पर ऐसा नहीं हो रहा है, इसका मतलब यह है कि ये पैसे भी सरकार के पास बचे नहीं हैं।
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