
केंद्र सरकार ने दिल्ली में एनसीटी कानून ऐसे समय लागू किया है, जब राज्य कोरोना वायरस की गिरफ्त में है। पूरे राज्य में कोरोना का संक्रमण फैला हुआ है और देश के दूसरे किसी भी राज्य के मुकाबले संक्रमण की दर ज्यादा दिख रही है। दिल्ली में पिछले 10 दिन से संक्रमण की दर लगातार 32 फीसदी के आसपास है। यानी टेस्ट कराने वाले तीन में से एक व्यक्ति संक्रमित मिल रहा है। ऐसे समय में दिल्ली सरकार के सारे अधिकार लेकर उप राज्यपाल को देना और उप राज्यपाल को दिल्ली सरकार बनाना एक जोखिम भरा फैसला है। केंद्रीय गृह मंत्रालय इस कानून की अधिसूचना थोड़े समय और टाल सकता था। आखिर नागरिकता संशोधन कानून के पास होने के डेढ़ साल बाद भी नियम नहीं बने हैं और कानून अधिसूचित नहीं हुआ है। उसी तरह यह कानून भी थोड़े दिन टला रह सकता था।
लेकिन कोरोना वायरस के पीक के समय केंद्र सरकार ने दिल्ली की चुनी हुई अरविंद केजरीवाल सरकार को अपंग बनाया है तो उसके पीछे जैसी भी हो, जरूर कोई योजना होगी। बहरहाल, सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अब कोरोना से जंग का मोर्चा केंद्रीय गृह मंत्रालय और उसके मंत्री अमित शाह संभालेंगे? क्या दिल्ली में ऑक्सीजन और अस्पतालों में बेड्स की कमी के लिए केंद्र केंद्र सरकार को जिम्मेदार माना जाएगा? क्या अदालतें अब दिल्ली सरकार को फटकार लगाएंगी तो उसका मतलब यह होगा कि उप राज्यपाल को फटकार लगाई जा रही है?
बहरहाल, कोरोना की पहली लहर के दौरान अमित शाह काफी सक्रिय रहे थे और अस्पतालों आदि का दौरा भी किया था। इस बार वे चुनाव में व्यस्त थे, लेकिन अब चुनाव खत्म हो गए हैं। इसलिए हो सकता है कि वे दिल्ली में कोरोना से लड़ाई की कमान संभालें और जीत दिलाएं! क्योंकि अब जो भी फैसला करना है वह केंद्रीय गृह मंत्रालय और उप राज्यपाल को करना है। दिल्ली सरकार के फैसलों का अब कोई मतलब नहीं है क्योंकि उन पर अमल तभी होगा, जब उप राज्यपाल चाहेंगे।