भारत दुनिया का एकमात्र देश है, जहां जिम्मेदार और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी कुछ भी कहने को स्वतंत्र होते हैं। वे कुछ भी ऐसा कह सकते हैं, जिसका कोई आधार न हो, सिर पैर न हो, जिसमें कोई तार्किकता न हो, तथ्य न हो और उसके बाद भी उन्हें कुछ नहीं होता है। सामने से चल कर कोई भी आदमी उनकी बात को गलत साबित कर देता है पर उन्हें न तो माफी मांगनी पड़ती है, न खेद जताना होता है। ज्यादा से ज्यादा यह होता है कि कई बार कृपा करके ऐसे लोग अपने बयान वापस ले लेते हैं। हालांकि वह भी कम ही मामलों में होता है। कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में भी ऐसे लोगों की बहार आई हुई है, जो इसे लेकर कुछ भी बोलते हैं। सरकार ने आम लोगों के लिए बहुत सख्त कानून बना दिया है कि अगर वे अफवाह फैलाते हुए पाए गए तो कानूनी कार्रवाई होगी पर यहीं बात राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर लागू नहीं होती है।
अगर लागू होती तो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के ऊपर अफवाह फैलाने का मुकदमा हो गया होता। अंग्रेजी के एक अखबार की खबर के मुताबिक उन्होंने कहा कि उनको अपने राज्य की सीमा इसलिए बंद करनी पड़ी क्योंकि असम के करीमगंज में 16 लोग संक्रमित हो गए हैं और मणिपुर में संक्रमण के 19 मामले सामने आए हैं।
जबकि असलियत कुछ और है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पूरे असम में 16 मामले हैं और करीमगंज में सिर्फ एक मामला है। जहां तक मणिपुर की बात है, तो जब मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने यह बात कही उस समय वहां सिर्फ दो मामले थे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मणिपुर की सीमा त्रिपुरा से कहीं भी नहीं मिलती है। कुछ लोगों ने इन गलतियों की ओर उनका ध्यान दिलाया पर उन्हें इसकी परवाह नहीं दिख रही है।
दूसरी ओर एक केंद्रीय मंत्री ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स के कोरोना वायरस के संक्रमण से मुक्त होने को लेकर अलग ही दावा कर दिया है। केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद यशोनाईक ने गोवा में कहा कि प्रिंस चार्ल्स आयुर्वेदिक इलाज से ठीक हुए हैं। इस पर भारत की आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली की वाहवाही होती उससे पहले ही ब्रिटेन ने इसका खंडन कर दिया। ब्रिटेन की ओर से आधिकारिक रूप से कहा गया कि प्रिंस चार्ल्स वहां की नेशनल हेल्थ सर्विस यानी एनएचएस के डॉक्टरों के इलाज से ठीक हुए हैं।
मंत्री, मुख्यमंत्री कुछ भी कह रहे हैं
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