पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया में यह विमर्श चल रहा था कि प्रधानमंत्री को विपक्षी पार्टियों के नेताओं से बात करनी चाहिए। खासतौर से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से जरूर बात करनी चाहिए क्योंकि कोरोना वायरस को लेकर देश में सबसे पहले उन्होंने ही आगाह करना शुरू किया था। राहुल 31 जनवरी से इसे लेकर ट्विट कर रहे थे और 12 फरवरी के बाद से तो वे लगातार इससे होने वाले आर्थिक नुकसान और मानवीय नुकसान की चिंता जाहिर कर रहे थे। राहुल पहले नेता थे, जिन्होंने ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करके संक्रमितों की पहचान करने और उनका इलाज करने पर जोर दिया। पर प्रधानमंत्री ने जब विपक्षी नेताओं से बात की तो उन्होंने राहुल से बात नहीं की।
सबसे पहले तो यह खबर आई कि प्रधानमंत्री आठ अप्रैल को संसद के दोनों सदनों में ऐसी पार्टियों के संसदीय नेताओं से बात करेंगे, जिनके पास पांच सांसद हैं। तब यह सवाल उठा कि संसदीय नेताओं से बात करके क्या हासिल होना है? इसमें कोई संसदीय कामकाज का मसला नहीं है। वैसे भी इस समय ज्यादातर पार्टियों के सर्वोच्च नेता इस समय संसदीय दल के नेता नहीं हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, सपा, बसपा, राजद, डीएमके, बीजद, टीआरएस, जेडीएस, लेफ्ट, जेएमएम आदि किसी पार्टी के शीर्ष नेता अपनी पार्टी के संसदीय दल के नेता नहीं हैं। संभवतः तभी प्रधानमंत्री ने फोन करके सभी पार्टियों के शीर्ष नेताओं से बात की।
उन्होंने समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से बात की और साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी बात की। पर कांग्रेस में सिर्फ सोनिया गांधी से ही बात की। वे राहुल गांधी से बात कर सकते थे। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे राहुल के नेतृत्व को वैधता मिलती। यह बात स्थापित होती कि प्रधानमंत्री भी उनको गंभीर नेता मानते हैं। कोरोना पर उनकी चेतावनियों की फिर से याद दिलाई जाती और कांग्रेस को प्रचार का मौका मिलता। इसके अलावा राहुल के खिलाफ सोशल मीडिया में अभियान चलाने वाली जमात के लिए आगे उनको पप्पू कहना मुश्किल हो जाता। संभवतः इसलिए उनसे बात नहीं की गई।
ऐसे ही बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से भी प्रधानमंत्री ने बात नहीं की। तेजस्वी बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता हैं। उनकी पार्टी के 80 विधायक हैं और राज्यसभा में पांच सांसद हैं। पर उनसे बात करने की जरूरत संभवतः इसलिए नहीं मानी गई कि अगले छह महीने में वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। प्रधानमंत्री के उनसे बात करने से उनके नेतृत्व को मजबूती मिलती और यह बात भाजपा की सहयोगी जदयू के नेताओं को नागवार गुजरती। बताया गया कि प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों और विपक्षी पार्टियों के नेताओं से बात की। राहुल इनमें से किसी श्रेणी में नहीं आते हैं पर तेजस्वी तो बिहार में विपक्षी पार्टी के नेता हैं!
राहुल से क्यों नहीं पीएम ने बात की?
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