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सात साल में कभी नहीं सुधरी भ्रष्टाचार रैंकिंग

ByNI Political,
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सात साल में कभी नहीं सुधरी भ्रष्टाचार रैंकिंग
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने सात साल होने जा रहे हैं पर इन सात सालों में भ्रष्टाचार के मामले में भारत की रेटिंग कभी नहीं सुधरी। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रेटिंग के मुताबिक मनमोहन सिंह के राज में एक अपवाद के साथ भारत की स्थिति हमेशा बेहतर रही। प्रधानमंत्री मोदी ने न खाऊंगा न खाने दूंग का नारा दिया था और मीडिया के जरिए यह नैरेटिव बनाया गया है कि यह ईमानदार सरकार है लेकिन हकीकत यह है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रेटिंग में पिछले सात साल में भारत की रेटिंग में कभी सुधार नहीं हुआ। मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में सिर्फ एक साल रेटिंग बहुत खराब रही थी, बाकी नौ साल की रेटिंग मोदी सरकार के सात साल की रेटिंग से बेहतर रही। दुनिया में भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली रैंकिंग एजेंसी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पिछले हफ्ते गुरुवार को ‘2020 करप्शन पर्सेप्शन्स इंडेक्स’ यानी सीपीआई जारी किया। इसमें भारत 40 अंकों के साथ 86वें स्थान पर है। पिछले साल 41 अंकों के साथ हमारा देश 80वें स्थान पर था। यानी कोरोना काल में भारत एक स्थान और नीचे चला गया है। न्यूजीलैंड और डेनमार्क 88 अंकों के साथ शीर्ष पर हैं और चीन सहित भारत के ज्यादातर पड़ोसी देशों की रैंकिंग भारत से अच्छी है। मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री बने थे उसके दो साल बाद 2006 और 2007 में भारत की स्थिति सबसे बेहतर रही थी तब भारत क्रमशः 70वें और 72वें स्थान पर रहा था। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की सबसे बेहतर स्थिति 2015 में रही थी, जब भारत 76वें स्थान पर रहा था। मनमोहन सरकार के कार्यकाल में आखिरी साल यानी 2013 में जरूर भ्रष्टाचार के  मामले में भारत के रेटिंग बिगड़ी थी पर वह 94वें स्थान पर पहुंच गया था लेकिन उसके पहले नौ साल रेटिंग ठीक-ठाक रही थी।
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