भारत में वैक्सीन को लेकर जितनी कथाएं प्रचलन में हैं उतनी संभवतः दुनिया के किसी देश में नहीं होगी। अब नई कथा यह कही जा रही है कि अगर वैक्सीन की डोज लगवाने के बाद भी लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हो रहा है तो उनकी रिकवरी जल्दी हो जाएगी। यह नहीं बताया जा रहा है कि जिन लोगों को दूसरी डोज भी लग गई है उनको कैसे संक्रमण हो रहा है। देश के सर्वश्रेष्ठ मेडिकल संस्थान एम्स दिल्ली में 20 डॉक्टरों और नौ छात्रों सहित कुल 32 स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण हो गया। देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित निजी अस्पताल गंगाराम में 37 स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना का संक्रमण हो गया। सोचें, इन लोगों को 16 जनवरी से शुरू हुए पहले चरण में ही टीका लगा होगा, 13 फरवरी से स्वास्थ्यकर्मियों को दूसरी डोज भी लगने लगी थी। इसके बावजूद इनको अगर संक्रमण हो रहा है तो उसका जवाब देने की बजाय कहा जा रहा है कि इनका संक्रमण जल्दी ठीक हो जाएगा।
यह कैसी बेतुकी बात है! करोड़ों लोगों को कोरोना का संक्रमण हो रहा है और वे अपने आप ठीक हो जा रहे हैं। फिर यह क्या लॉजिक है कि जिनको वैक्सीन लगी है वे जल्दी ठीक हो जाएंगे। वैक्सीन तो संक्रमण न हो इसके लिए लगाई जा रही है फिर यह कहने का क्या मतलब है कि संक्रमण तो हो जाएगा पर ठीक जल्दी हो जाएंगे? ठीक तो वैसे भी लोग हो जा रहे हैं, जिनको टीका नहीं लगा है! तो क्या यह माना जाए कि वैक्सीन किसी तरह का प्रोटेक्शन नहीं दे रहा है? किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। आखिर कोविड-19 इतिहास की पहली बीमारी है, जिसकी दवा नहीं आई है पर वैक्सीन आ गई है। अभी तक दुनिया की किसी लैब में कोविड-19 की बीमारी ठीक करने की दवा नहीं बनी है पर दर्जनों लैब्स में वैक्सीन बन गई। यह बग्घी के आगे घोड़ी जोतने वाली बात है। बाकी बीमारियों में दवा पहले आई है और वैक्सीन बाद में बनी है।
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