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कांग्रेस नेता क्षत्रपों से बढ़ा रहे हैं टकराव

ByNI Political,
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कांग्रेस नेता क्षत्रपों से बढ़ा रहे हैं टकराव
अपने प्रादेशिक सहयोगियों के साथ कांग्रेस के संबंध कभी भी अच्छे नहीं रहे हैं। तभी प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस को लेकर हमेशा सशंकित रहती हैं। कांग्रेस के बड़े नेता इस बात को जानते समझते हैं और इस छवि को बदलने का प्रयास भी कर रहे हैं। पर उनको कोई खास कामयाबी नहीं मिल पा रही है। प्रदेशों में कांग्रेस के नेता अपने छोटे छोटे हितों की वजह से अपने सहयोगी क्षत्रपों से टकराव बढ़ा रहे हैं। बिहार से लेकर झारखंड और महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक तक एक जैसी कहानी है। अभी कांग्रेस के दिल्ली के आला नेताओं ने जैसे तैसे तमिलनाडु का विवाद सुलझाया है। वहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केएस अलागिरी कांग्रेस की सहयोगी डीएमके से उलझ गए थे। उन्होंने डीएमके पर कांग्रेस और प्रदेश के आम लोगों को हितों की अनदेखी का आरोप लगाया था। डीएमके नेता एमके स्टालिन इससे इतने नाराज थे कि उन्होंने सोनिया गांधी की बुलाई विपक्षी पार्टियों की बैठक का बहिष्कार किया। फिर कांग्रेस नेतृत्व ने अलागिरी को दिल्ली बुलाया और उन्हें समझौता करने को कहा। उधर महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने शिव सेना को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है। वैसे शिव सेना के साथ कांग्रेस के संबंध तनाव वाले ही हैं। राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस सेवा दल के नेता लालजी भाई देसाई तक सब शिव सेना के साथ तनाव बढ़ाने में लगे हैं। कर्नाटक में जेडीएस के साथ कांग्रेस ने मिल कर सरकार चलाई पर सरकार गिरते ही दोनों पार्टियों झगड़ा हो गया। कांग्रेस के दो बड़े नेता सिद्धरमैया और डीके शिव कुमार दोनों जेडीएस और एचडी देवगौड़ा परिवार के सद्भाव नहीं रखते हैं। इसी तरह लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बिहार में कांग्रेस की पुरानी और भरोसेमंद सहयोगी रही है। पर पार्टी के नेता राजद की ओर से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने के फैसले का विरोध कर रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस ने झारखंड में हेमंत सोरेन को नेता मानने में कोई झिझक नहीं दिखाई तो बिहार में तेजस्वी को लेकर भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। पर अपनी आदत से मजबूर पार्टी के नेता सवाल उठा रहे हैं। झारखंड में भी कांग्रेस ने हेमंत को सीएम दावेदार बना कर चुनाव लड़ा। पर जीतने के बाद से कांग्रेस ने हेमंत को पानी पिलाया हुआ है। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पिछले तीन हफ्ते से ज्यादा समय से हेमंत कई बार दिल्ली के चक्कर काट चुके हैं। पर मंत्रियों की संख्या और विभागों को लेकर कांग्रेस के साथ मामला नहीं सुलझ रहा है।
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