
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में मिली हार से सबक लिया है। तभी इस बार उसने बिना कोई चेहरा आगे किए चुनाव लड़ने का इरादा बनाया। पार्टी के जानकार सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस इस बार सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट नहीं करेगी। इससे पहले दिसंबर 2013 के चुनाव में भाजपा डॉक्टर हर्षवर्धन के चेहरे पर लड़ी थी। तब उसे दिल्ली की 70 में से 32 सीटें मिलीं पर वह सरकार नहीं बना पाई। 28 सीटों वाली आप ने कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाई और 49 दिन के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जनवरी 2015 के चुनाव में भाजपा पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को प्रोजेक्ट करके लड़ी और उसे सिर्फ तीन सीटें मिलीं। तभी इस बार पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है।
इसका नतीजा यह है कि जिस तरह भाजपा दूसरे राज्यों में कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों से पूछती है कि उसका चेहरा कौन है वैसे ही आप के नेता दिल्ली में भाजपा से पूछ रहे हैं। असल में भाजपा को पूर्वांचल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, वैश्य नेताओं- विजय गोयल, हर्षवर्धन और विजेंद्र गुप्ता और जाट नेता प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के बीच चल रही खींचतान का अंदाजा है। पार्टी इनमें से किसी वोट को नाराज नहीं कर सकती है। इसलिए माना जा रहा है कि वह हर समुदाय को यह भरोसा दिलाएगी कि उसका ही नेता मुख्यमंत्री बनेगा। यह भाजपा के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है। पूर्वांचल का वोट कभी भी उसका नहीं रहा है, जबकि पंजाबी व वैश्य वोट अब दिल्ली में पहले की तरह निर्णायक नहीं है। तभी भाजपा सामूहिक नेतृत्व पर जोर दे रही है।