जिस तरह दिल्ली के चुनाव में यह बड़ा सवाल है कि जदयू और लोजपा ने भाजपा से क्यों तालमेल कर लिया उसी तरह का सवाल है कि अकाली दल और हरियाणा में भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी चुनाव क्यों नहीं लड़े? पहले कहा जा रहा था कि भाजपा अकाली दल को चार सीटें देने जा रही है और जजपा को पांच-छह सीट दी जा सकती है। पर अचानक खबर आई कि नागरिकता कानून के मसले पर अकाली दल ने अपनी राय नहीं बदलने का फैसला किया है और वह चुनाव नहीं लड़ेगी। जजपा ने बिना कारण बताए ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। अकाली दल के एक दूसरे धड़े के नेता मंजीत सिंह जीके ने अकाली दर के चुनाव नहीं लड़ने का दिलचस्प कारण बताया। उन्होंने कहा कि सीबीआई और ईडी के डर से अकाली दल चुनाव नहीं लड़ रही है। सवाल है कि फिर जजपा को किस बात का डर है?
यह भी बड़ा सवाल है कि इन दोनों के चुनाव नहीं लड़ने का फायदा किसको होगा? क्या भाजपा यह उम्मीद कर रही है कि दोनों सहयोगी दलों के नहीं लड़ने से सिख और जाट वोट उसको मिलेंगे? ध्यान रहे भाजपा ने गैर जाट मुख्यमंत्री बनाया है, जिससे जाट नाराज हैं और इसी नाराजगी में उन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा के विरोध में वोट डाला। उनका वोट कांग्रेस और जजपा को गया। भाजपा सरकार में दुष्यंत चौटाला के उप मुख्यमंत्री बन जाने से जाट खुश होकर भाजपा को वोट देगा, ऐसा सोचना बड़ी गलती होगी। चौटाला की पार्टी के साथ लड़ने से जरूर कुछ वोट मिल सकते थे।