दिल्ली के चुनाव नतीजों से सबसे ज्यादा खुश और संतोष में कोई होगा तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होंगे। भाजपा की सहयोगी जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की पार्टी पिछले कुछ समय से भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत काम कर रही थी। जदयू से निकाल गए प्रशांत किशोर ने पार्टी से हटने से कुछ दिन पहले ही एक फार्मूला दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा के मुकाबले जनता दल यू को एक-तिहाई या एक-चौथाई सीट ज्यादा मिलनी चाहिए। उन्होंने एक के मुकाबले 1.3 या 1.4 सीट का फार्मूला दिया था। इस फार्मूले के हिसाब से जनता दल यू बिहार की 243 में आधी सीटों का यानी कम से कम 122 सीट का दावा कर सकती है। बाकी 122 सीटें भाजपा और लोजपा में बंटने का फार्मूला है।
भाजपा पहले की स्थितियों में इसके लिए शायद ही तैयार होती। पर झारखंड और उसके बाद दिल्ली के चुनाव नतीजों ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। बिहार में भाजपा नीतीश कुमार से अलग लड़ कर नतीजा देख चुकी है। इसलिए वह नीतीश के साथ ही सीटों पर मोलभाव करेगी, जिसमें नीतीश बांह मरोड़ कर ज्यादा सीट ले लेंगे। ध्यान रहे लोकसभा चुनाव में तब के भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उदारता दिखाते हुए जदयू के साथ बराबर सीटों का बंटवारा किया था। तभी कहा जा रहा था कि विधानसभा में भी दोनों पार्टियां बराबर सीटों पर लड़ेंगी। लेकिन जदयू के नेता ज्यादा सीट पर लड़ने के लिए अड़े हैं क्योंकि उनको लग रहा है कि बराबर सीटें लड़े तो भाजपा को ज्यादा सीट आएगी और चुनाव बाद वह नई राजनीति कर सकती है।
दिल्ली का बड़ा फायदा नीतीश को
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