दिल्ली के चुने हुए मुख्यमंत्री का अधिकार छीन कर उप राज्यपाल के तौर पर काम कर रहे रिटायर ‘बाबू’ को मुख्यमंत्री के अधिकार देने वाला कानून केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से लाया गया था। यह इतना जरूरी था कि पांच राज्यों में चल रहे चुनाव के बीच इसे पेश किया गया और आनन-फानन में इसे पास कराया गया। केंद्र सरकार इसे इतना जरूरी मान रही थी कि उसने उसे संसदीय समिति के पास भेजना भी जरूरी नहीं समझा। इसके बावजूद केंद्रीय गृह मंत्री को इसकी बहस में शामिल होने का समय नहीं था। न तो प्रधानमंत्री इस बिल पर हुई बहस के समय सदन में मौजूद रहे और न गृह मंत्री। जिस समय प्रतिष्ठा का सवाल बना कर और व्हीप जारी केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बिल पर बहस कराई उस समय भी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री चुनाव प्रचार कर रहे थे।
राज्यसभा में बिल पर बहस के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि उनकी नेता ममता बनर्जी ने कहा कि घोषणापत्र नहीं, संविधान ज्यादा अहम है और इसलिए तृणमूल कांग्रेस के 10 सांसद प्रचार छोड़ कर इस पर चर्चा में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली पहुंचे। लेकिन जिस समय यह चर्चा हो रही थी उस समय प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल व असम में और अमित शाह केरल में चुनाव प्रचार कर रहे थे। बिल पेश करने और चर्चा का जवाब देने का जिम्मा जूनियर मंत्री जी किशन रेड्डी को सौंपा गया था। इससे भी संसदीय परंपरा और व्यवस्था के प्रति सरकार का नजरिया समझ में आता है।
विधायी कामों के लिए समय नहीं
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