दिल्ली में विधानसभा चुनावों की घोषणा क्या जल्दबाजी में की गई है? क्या इस घोषणा का जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सोमवार को हुई हिंसा से कोई लेना देना है? जानकार सूत्रों का कहना है कि चुनाव की घोषणा शनिवार को होने वाली थी। इसके दो कारण बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब चुनाव की अधिसूचना 14 जनवरी को जारी होने वाली है और उसी दिन से नामांकन शुरू होना है तो छह जनवरी को चुनाव की घोषणा करने की जरूरत नहीं थी। हालांकि पहले इस तरह से घोषणा होती रही है। दूसरे यह भी कहा जा रहा है कि जल्दबाजी में घोषणा की गई इसलिए तीसरे चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस में शामिल नहीं हो पाए।
हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि सारी बातें पहले से तय हो चुकी थीं इसलिए तीसरे चुनाव आयुक्त का न होना कोई बड़ी बात नहीं है। ध्यान रहे झारखंड चुनाव की घोषणा के दौरान भी एक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा मौजूद नहीं थे। पर लवासा और सुशील चंद्रा में अंतर है। लवासा के परिजनों के खिलाफ इन दिनों केंद्रीय एजेंसियों की जांच चल रही है। बहरहाल, हर मामले में साजिश थ्योरी देखने वाली जमात का कहना है कि जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा से ध्यान भटकाने में दिल्ली चुनाव की घोषणा बहुत कारगर साबित हुई है। इस आधार पर उनका कहना है कि सोमवार को चुनाव की तारीखों का ऐलान करने का फैसला अनायास नहीं हुआ है।
जेएनयू हिंसा और चुनाव की घोषणा!
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