चार-पांच महीने पहले जम्मू कश्मीर की सड़कों पर अजित डोवाल के घूमने, लोगों से मिलने, सड़क के किनारे खड़े होकर चाय पीने और लोगों को दिलासा देने की फोटो और वीडियो वायरल हुई थी। तब उन्होंने कहा था कि सब कुछ सामान्य है और केंद्र सरकार आज इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपा रही है जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद एक नागरिक की मौत नहीं हुई है और न नागरिकों पर गोली चलाने की जरूरत पड़ी है। अब जम्मू कश्मीर की कहानी दिल्ली में दोहराई गई है। दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के तीसरे दिन की रात को डोवाल दिल्ली की सड़कों पर उतरे और चौथे दिन से शांति कायम हो गई।
कहा जा सकता है कि दंगा वैसे ही शांत होने वाला था क्योंकि सुरक्षा बलों की गश्त और फ्लैग मार्च होने लगी थी, अतिरिक्त तैनाती हो गई थी और राजनीतिक दलों की पहल पर भी शांति बहाली का काम शुरू हो गया था। जो भी हो, मंगलवार की रात को दिल्ली की सड़कों पर डोवाल के उतरने का बड़ा मैसेज है। सोशल मीडिया में उनकी तारीफ के पुल बांधे जा रहे हैं। उनकी अपील और यह कहना कि ‘इंशाअल्लाह शांति बहाल होगी’ सोशल मीडिया में हिट हुआ है।
पर सवाल है कि ऐसी क्या जरूरत पड़ी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को दिल्ली का दंगा काबू करने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा? कश्मीर का मामला समझ में आता है क्योंकि वहां पाकिस्तान का दखल है पर दिल्ली का दंगा को कानून-व्यवस्था की स्थानीय समस्या है, जिसे पुलिस को सुलझाना चाहिए। चूंकि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के तहत आती है तो ज्यादा से ज्यादा केंद्रीय गृह मंत्रालय के किसी आला अधिकारी को केंद्रीय गृह राज्यमंत्रियों में से किसी को भेजा जा सकता था। पर इसकी बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा गया और उनके पीछे पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद शांति की अपील की।
तभी इस पूरे घटनाक्रम में सरकार के शीर्ष पर की राजनीति को लेकर बहुत कयास लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अमित शाह के गृह मंत्री और एस जयशंकर के विदेश मंत्री बनने के बाद हाशिए में गए अजित डोवाल को खुद प्रधानमंत्री ने आगे किया है और उन्हें फिर से पुराना महत्व दिया है। यह भी कहा जा रहा है कि इससे गृह मंत्रालय की विफलता दिखी है और तभी प्रधानमंत्री कार्यालय को कमान हाथ में लेनी पड़ी। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक शीर्ष अधिकारी को लेकर भी चर्चा है कि उन्होंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अमूल्य पटनायक को तमाम विफलताओं के बावजूद बनाए रखा और पैरवी करके उनको सेवा विस्तार दिलवाया। उन्हें एक बार और सेवा विस्तार देने की बात हो रही थी पर पीएमओ के अधिकारी को कामयाबी नहीं मिल सकी।
कश्मीर के बाद दिल्ली में डोवाल, डोवाल!
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