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राज्यसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस का फर्क

ByNI Political,
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राज्यसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस का फर्क
राज्यसभा का एक मिनी चुनाव पिछले दिनों हुआ, जिसमें छह राज्यों की सात सीटों के लिए उपचुनाव हुए। पिछले सात साल से हो रहे हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस के कामकाज और रणनीति का फर्क जाहिर हुआ। इस चुनाव में कायदे से भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिलनी थीं, जो उसकी खुद की थी। लेकिन उसके एक तीसरी सीट भी जीत ली। दूसरी ओर कांग्रेस को पक्के तौर पर दो सीटें मिलनी थीं, लेकिन उसने सिर्फ एक सीट से संतोष किया। उसने दूसरी सीट के लिए प्रयास ही नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ है कि वह उच्च सदन में जहां की तहां खड़ी है और भाजपा सौ सीटों के आंकड़े के और भी करीब पहुंच गई। RajyaSabha elections BJP Congress पहले भाजपा की गणित देखें। सात सीटों में से दो सीटें उसके नेताओं के इस्तीफे से खाली हुई थी और उसके शासन वाले राज्य में थी। मध्य प्रदेश की एक सीट थावरचंद गहलोत के कर्नाटक का राज्यपाल बनने से खाली हुई तो असम की एक सीट बिस्वजीत डिमरी के राज्य विधानसभा का सदस्य बन कर स्पीकर बन जाने से खाली हुई। ये दोनों सीटें तो भाजपा को मिलनी ही थी। लेकिन उसने पुड्डुचेरी की इकलौती सीट हासिल करके अपनी सीटों की संख्या बढ़ा ली। parliament RajyaSabha elections BJP Congress Read also पंजाबः भस्मासुरी राजनीति ध्यान रहे पुड्डुचेरी में भाजपा के समर्थन से ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस की सरकार है और रंगास्वामी मुख्यमंत्री हैं। उनकी पार्टी ने 10 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा को छह सीटें मिली थीं। भाजपा के पास केंद्र से मनोनीत तीन सदस्य अलग से हैं। चूंकि मुख्यमंत्री रंगास्वामी हैं इसलिए राज्य की इकलौती सीट पर उनकी पार्टी का दावा था। ऊपर से यह सीट तमिलनाडु में भाजपा की सहयोही अन्ना डीएमके की थी। उसके नेता एन गोकुलकृष्णन इस सीट से जीते थे। लेकिन भाजपा ने अन्ना डीएमके और एनआर कांग्रेस दोनों से बात करके सीट अपने लिए ले ली। उसके नेता सेल्वापति राज्यसभा सदस्य चुने गए हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के सांसद राजीव सातव के निधन से महाराष्ट्र की एक सीट खाली हुई थी, जो कांग्रेस को मिलनी थी और वहीं एक सीट कांग्रेस को मिली। तमिलनाडु में तीन सीटों के उपचुनाव हुए, जिनमें से कांग्रेस को एक सीट मिल सकती थी। तमिलनाडु में वैसे डीएमके को अपने दम पर बहुमत है फिर भी कांग्रेस 18 सीटों वाली उसकी सहयोगी पार्टी है और डीएमके अब भी यूपीए का हिस्सा है। दूसरे, यह भी खबर है कि डीएमके नेता और राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कांग्रेस नेतृत्व को भरोसा दिया था कि एक सीट उसे मिलेगी। लेकिन बताया जा रहा है कि जब चुनाव की घोषणा हुई उसके बाद राहुल गांधी ने इस बारे में बात ही नहीं की क्योंकि उनको वह सीट गुलाम नबी आजाद को देनी होती। हालांकि जानकार नेता बता रहे हैं कि अगर राहुल बात करते तो किसी और के नाम पर भी सहमति बन सकती थी। बहरहाल, डीएमके से बात नहीं करने का नतीजा है कि कांग्रेस उच्च सदन में 34 सीटों पर अटकी है और भाजपा 97 सीटों पर पहुंच गई।
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