मुख्यमंत्रियों का एक मॉडल अरविंद केजरीवाल है। वे 2015 में प्रचंड बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने। उन्हें दिल्ली की 70 में से 67 सीटें मिलीं और जब सरकार बनी तो उन्होंने कोई विभाग अपने पास नहीं रखा। उन्होंने सारे विभाग दूसरे मंत्रियों में बांट दिए। यह सही है कि मुख्यमंत्री भी कैबिनेट मंत्री होता है लेकिन वह समानों में प्रथम होता है और इसका ध्यान रखते हुए उन्होंने बाकी मंत्रियों की तरह अपने पास कोई विभाग नहीं रखा। दूसरी बार भी वे भारी बहुमत से मुख्यमंत्री बने और तब भी कोई विभाग अपने पास नही रखा। हां, दिल्ली में पानी की आपूर्ति का काम जरूर उन्होंने अपनी निगरानी में रखा।
इसके उलट भाजपा के मुख्यमंत्रियों का एक मॉडल है। वे सारे विभाग अपने ही पास रखते हैं। उत्तर प्रदेश में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने 34 विभाग अपने पास रखे हैं। उन्होंने गृह के अलावा नियुक्ति, सतर्कता, कार्मिक, आवास, खाद्य आपूर्ति, खनन जैसे तीन दर्जन विभाग अपने पास रखे। उन्हीं के नक्शे कदम पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी दो दर्जन विभाग अपने पास रखे हैं। गृह के अलावा औद्योगिक विकास, खनन, श्रम, उत्पाद, पर्यावरण, आपदा राहत आदि विभाग अपने पास रखे हैं। भाजपा जिन चार राज्यों में इस बार जीती है उनमें हर जगह दो हफ्ते के बाद ही सरकार बनी और सरकार बनने के बाद विभागों के बंटवारे में भी काफी समय लगा। मुख्यमंत्रियों के अलावा सबसे ज्यादा और सबसे अहम विभाग कांग्रेस या दूसरी पार्टियों से भाजपा में गए नेताओं को मिला है।