त्रिपुरा में भाजपा ने सीपीएम का 25 साल का राज खत्म किया था। यह बहुत बड़ी बात थी। लेकिन पांच साल पूरा होने से पहले ही भाजपा की स्थिति बिगड़ने लगी है। मुख्यमंत्री बिप्लब देब को हटाना इसका एक संकेत है। लेकिन इसके अलावा भी पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है। आदिवासियों के बीच पार्टी को लेकर नाराजगी बढ़ी है तो कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए नेता वापस लौटने लगे हैं। राज्य सरकार में मंत्री रहे पूर्व कांग्रेसी नेता भाजपा छोड़ कर चले गए हैं और कांग्रेस में वापस लौट गए हैं। नए चुने गए मुख्यमंत्री का पार्टी के अंदर ही विरोध शुरू हो गया है।
भाजपा की सहयोगी इंडेजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा यानी आईपीएफटी में विभाजन की संभावना दिख रही है। पार्टी ने राज्य सरकार के भू राजस्व मंत्री एनसी देबबर्मा को अधय्क्ष चुना है, जिनका पूर्व अध्यक्ष मेवल कुमार जमातिया विरोध कर रहे हैं। आदिवासी मतदाताओं में इस पार्टी का अच्छा खासा असर है। उधर आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक दूसरा संगठन त्रिपुरा इंडिजेनस प्रोग्रेसिव रीजनल एलायंस यानी टिपरा की भी भाजपा से नाराजगी बढ़ी है। ध्यान रहे त्रिपुरा में 60 में से 20 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं और इसके अलावा 15 सीटों पर उनका अच्छा खासा असर है। सो, एक तरफ दलबदल कर आने वाले नेताओं की नाराजगी दूसरी ओर भाजपा और संघ के नेताओं के बीच आपसी खींचतान और तीसरे, आदिवासी समूहों की नए सिरे से गोलबंदी भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
त्रिपुरा में भाजपा की राह मुश्किल
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