कर्नाटक में अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। यह राज्य भाजपा के लिए बहुत अहम इसलिए है क्योंकि दक्षिण भारत का इकलौता राज्य है, जहां भाजपा की सरकार है। बाकी किसी राज्य में निकट भविष्य में भाजपा के अपने दम पर सत्ता में आने की संभावना नहीं दिख रही है। दूसरा कारण यह है कि कर्नाटक की 28 में से 25 लोकसभा सीटें भाजपा ने जीती हैं और पार्टी को हर हाल में अगले चुनाव में इसमें से अधिकतम सीटें बचानी हैं। तभी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में हर फॉर्मूले पर चर्चा हो रही है, जिसमें से एक गुजरात फॉर्मूला भी है।
गुजरात फॉर्मूले का मतलब है कि एंटी इन्कंबैंसी कम करने या खत्म करने के लिए ऊपर से नीचे तक सबको बदल दो। भाजपा ने पिछले साल मुख्यमंत्री तो बदला लेकिन मंत्रियों को नहीं बदला गया। बीएस येदियुरप्पा सरकार के ज्यादातर मंत्री बसवराज बोम्मई की सरकार में शामिल हो गए। इतना ही नहीं पार्टी के तमाम पुराने नेता, जो दशकों से विधायक या सांसद और मंत्री बनते रहे हैं वे सब भी अपनी जगह बने रहे। भाजपा आलाकमान ने 75 साल की उम्र सीमा पार कर चुके बीएस येदियुरप्पा को पार्टी की सर्वोच्च बॉडी संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया और राज्य की राजनीति में भी उनको पर्याप्त तरजीह दी जा रही है।
इस बीच गुजरात फॉर्मूले के तहत पुराने नेताओं की विदाई और ज्यादातर विधायकों व सांसदों की टिकट काटने की मांग शुरू हो गई है। येदियुरप्पा के करीबी रहे और हाल में राज्यसभा सांसद बने लहर सिंह सिरोया ने दो टूक शब्दों में कहा कि पुराने नेता रास्ता खाली करें ताकि नए नेताओं को मौका मिले। उन्होंने गुजरात में पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व उप मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्रियों, पूर्व प्रदेश अध्यक्षों आदि के चुनाव लड़ने से मना करने का हवाला देते हुए पुराने नेताओं से रास्ता खाली करने को कहा। ध्यान रहे विजय रुपानी, नितिन पटेल, सौरभ पटेल, भूपेंद्र चूड़ासमा, आरसी फालदू जैसे बड़े नेताओं ने चुनाव लड़ने से मना किया तो उसकी हकीकत सबको पता है कि उनको ऐसा करने के लिए पार्टी की ओर से कहा गया।
कर्नाटक में उसी तरह की सर्जरी की चर्चा हो रही है। असल में कर्नाटक में भाजपा कई खेमों में बंटी है और दूसरी ओर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस में जान लौटी है। कांग्रेस ने कर्नाटक के मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनाया है। इससे मुकाबला कांटे हो गया है। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई से लेकर संसदीय बोर्ड के सदस्य बीएस येदियुरप्पा, पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष केएस ईश्वरप्पा और सबसे ऊपर भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष की अपनी अपनी राजनीति है, जिससे भाजपा को मुश्किल हो रही है।