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किताबें बदलने का आसान तरीका

ByNI Desk,
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किताबें बदलने का आसान तरीका
केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और कई राज्यों में भी भाजपा का सरकारें इतिहास और कुछ अन्य विषयों की किताबें बदल रही हैं। राजनीतिक शास्त्र की किताबों में भी बदलाव किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पहली बार किताबें बदली जा रही हैं लेकिन पहली बार इतने आसान तरीके से किताबें बदली जा रही हैं। इससे पहले किताबों को बदलने की एक प्रक्रिया होती थी। लेखकों और संपादकों की टीम उसमें काम करती थी। विषय की समग्रता को ध्यान में रख कर बदलाव किया जाता था। यह ध्यान रखा जाता था कि किसी विषय की किताब में बदलाव इस तरह हो कि बदलाव का बावजूद तारतम्य बना रहे। ऐसा न लगे कि अचानक बीच में कुछ हटा दिया गया है। इस बार ऐसा नहीं किया जा रहा है। इस बार कहीं से कुछ भी हटा दिया जा रहा है, जिससे विषय की समग्रता प्रभावित हो रही है। एनसीईआरटी की कई किताबों में बदलाव किया गया है। दिल्ली सल्तनत और मुगल काल के शासकों के बारे में जो अध्याय थे उन्हें छोटा किया गया है। लेकिन छोटा करने का यह मतलब नहीं है कि नए सिरे से अध्याय लिखे गए हैं। कहीं कहीं से कुछ चीजें हटा दी गई हैं। इसका मकसद यह है कि छात्र कुछ चीजों के बारे में न जानें या कम जानें। इसकी जगह अगर वस्तुनिष्ठ तरीके से उन विषयों के बारे में नए सिरे से लिखा जाता तो वह ज्यादा बेहतर होगा। उससे छात्रों को अपना दृष्टिकोण बनाने में मदद मिलती। अगर भाजपा को अपनी विचारधारा के हिसाब से ही इतिहास और राजनीतिशास्त्र की किताबें बनवानी हैं तब भी हर अध्याय नए सिरे से लिखना ज्यादा बेहतर उपाय था। जैसे कांग्रेस के शासन में रहते जो किताबें बनी हैं उनमें भी इमरजेंसी का अध्याय है। लेकिन अब गुजरात दंगों का अध्याय हटाया जा रहा है। अगर थोड़ी मेहनत की जाती है तो अध्याय हटाने की बजाय उसे नए परिप्रेक्ष्य के साथ लिखा जा सकता था। लेकिन यह एक बौद्धिक कर्म है और इसमें समय भी बहुत ज्यादा लगता हैI
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