मध्य प्रदेश के दो चरण में हुए निकाय चुनाव के नतीजे आ गए हैं। राज्य की दोनों बड़ी पार्टियां अपने अपने हिसाब से उसकी व्याख्या कर रही हैं। लेकिन दोनों पार्टियों के अंदर भी इसकी अलग अलग व्याख्या हो रही है। भाजपा के नेता दो तरह से इसकी व्याख्या कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी नेता इसे बड़ी जीत बता रहे हैं और उनका कहना है कि इससे मुख्यमंत्री बदलने की अटकलें थम गईं। अपने समर्थन में वे प्रधानमंत्री द्वारा दी गई बधाई का इस्तेमाल कर रहे हैं। दूसरा खेमा बता रहा है कि पिछली बार कांग्रेस का एक भी मेयर नहीं जीत पाया था, जबकि इस बार पांच मेयर जीत गए। पिछली बार सभी 16 मेयर भाजपा के थे, जबकि इस बार सिर्फ नौ हैं। इस तरह नतीजों के बाल की खाल निकाल कर अगले साल के विधानसभा चुनाव से पहले सीएम बदलने की चर्चा चलवाए हुए हैं। पता नहीं भाजपा आलाकमान क्या करेगा लेकिन नरोत्तम मिश्रा से लेकर प्रहलाद पटेल तक कई नेताओं के नाम की चर्चा शुरू हो गई है।
कांग्रेस और भाजपा में इसे लेकर अलग बहस छिड़ी है। कांग्रेस इसे अपनी बड़ी जीत बता रही है और उसका कहना है कि अगले साल के चुनाव में कमलनाथ फिर आ रहे हैं। उनका कहना है कि 2015 में हुए चुनाव में कांग्रेस का एक भी मेयर नहीं जीता था तब 2018 में कांग्रेस जीत गई थी, जबकि इस बार तो कांग्रेस के पांच मेयर जीते हैं। कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में और नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ मुरैना में भी जीत दर्ज की है। दूसरी ओर भाजपा का कहना है कि तमाम जोर लगाने के बावजूद भाजपा से आधी जीत मिली है कांग्रेस को। राज्य के 16 में से नौ मेयर भाजपा के हैं, जबकि कांग्रेस के पांच हैं। इसी तरह इन 16 नगर निगमों में 491 वार्ड में भाजपा जीती है, जबकि कांग्रेस 274 जीत पाई है। राज्य की 76 नगरपालिकाओं 975 वार्ड पर भाजपा जीती है, जबकि कांग्रेस 571 पर में जीती है। राज्य के 225 कौंसिल में 2,002 वार्ड में भाजपा और 1,087 वार्ड में कांग्रेस जीती है।