केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में 145 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों के बारे में जल्दी किसी फैसले की जरूरत है। अगर केंद्र सरकार कोई फैसला नहीं करती है तो उसका कारण समझ में आता है। उसका राजनीतिक मकसद है और जिस कारोबारी मकसद के लिए उसने ये कानून बनाए हैं उसे भी पूरा करना है। कुछ चुनिंदा कारोबारियों के हितों के सामने किसानों के हित उसके लिए ज्यादा मायने नहीं रखते हैं। लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट के सामने भी ऐसी ही मजबूरी है, जो वह फैसला नहीं कर रही है। आखिर सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है पर अदालत उस पर कोई विचार क्यों नहीं कर रही है?
यह सही है कि इन दिनों कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण की वजह से अदालत का काम पूरी रफ्तार से नहीं हो रहा है और वर्चुअल सुनवाई करनी पड़ रही है। लेकिन सर्वोच्च अदालत को प्राथमिकता तय करनी होगी। उसकी बनाई तीन सदस्यों की कमेटी ने कोई दस दिन पहले अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है। अदालत ने इस कमेटी को आठ हफ्ते का ही समय दिया था। हालांकि रिपोर्ट सौंपने में उससे ज्यादा समय लगा फिर भी जब रिपोर्ट आ गई है तो सरकार को इस पर सुनवाई करके मामले का निपटारा करना चाहिए। अदालत जब तक कोई फैसला नहीं करती है तब तक यथास्थिति बनी हुई है। अदालत ने कानूनों के अमल पर रोक लगाई है और दूसरी ओर किसान आंदोलन पर बैठे हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से किसानों की सेहत और जान खतरे में है। सो, अदालत को पहल करके सरकार और आंदोलन कर रहे संगठनों को निर्देश देना चाहिए।
किसानों पर सुप्रीम कोर्ट भी चुप
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