क्या केंद्र सरकार जान बूझकर ऐसे काम कर रही है, जिससे किसान संगठन बदनाम हों? किसान नेताओं ने ऐसे आरोप लगाए है कि सरकार किसानों को बदनाम करने वाले काम खुद करा रही है। वैसे पहले भी आंदोलन शुरू होने के साथ ही कई किस्म की झूठी खबरों के जरिए किसानों के आंदोलन को बदनाम किया जा रहा था। फोटोशॉप की गई तस्वीरों के जरिए आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग का बताया जा रहा था और शाहीन बाग के साथ जोड़ा जा रहा था। पर सोशल मीडिया में चलने वाले कैंपेन का बहुत प्रभावी जवाब किसान संगठनों के आईटी सेल ने कर दिया है। इसलिए अब वहां मोर्चा लगभग बंद है। अब पुलिस और प्रशासन के जरिए किसान आंदोलन की बदनामी का मोर्चा खोला गया है।
गृह मंत्रालय बात-बात पर आंदोलन की जगहों के आसपास इंटरनेट बंद कर देता है। नए साल में अब तक आठ बार इंटरनेट बंद किया जा चुका है। पूरी दुनिया में इंटरनेट बंद करने वाले देशों में भारत अव्वल है। दुनिया का दूसरा कोई भी देश भारत के आसपास भी नहीं है। चूंकि इन दिनों बच्चों के स्कूल-कॉले-कोचिंग सब बंद हैं और ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है इसलिए इंटरनेट बंद होने का उन पर बड़ा असर हो रहा है। आंदोलन के आसपास के इलाकों में लोगों को दिक्कत हो रही है और वे अपने गुस्सा किसानों पर निकाल रहे हैं। किसान संगठनों का कहना है कि यह काम जान बूझ कर किया जा रहा है।
इसी तरह दिल्ली पुलिस ने उन सड़कों को बंद कर दिया है, जो पहले खुली हुई थीं। नेशनल हाईवे नंबर 24 पर गाजीपुर बॉर्डर के पास थोड़ी दूर तक एक तरफ सड़क बंद थी और दूसरी ओर से दोनों तरफ का ट्रैफिक चल रहा था। लेकिन पुलिस ने 26 जनवरी की घटना के बहाने दोनों तरफ सड़कें बंद कर दी है। इसकी वजह से लोगों को बड़ी परेशानी हो रही है। लोग दो-दो घंटे ट्रैफिक फंसे रह रहे हैं और किसानों को गालियां दे रहे हैं, जबकि इसमें किसानों की कोई गलती नहीं है। इसी तरह किसानों ने शनिवार को चक्का जाम की घोषणा से दिल्ली को बाहर रखा था लेकिन दिल्ली में 50 हजार जवानों की तैनाती कराई गई और दस मेट्रो स्टेशन थोड़ी देर के लिए बंद किए गए। इसका भी मकसद लोगों को परेशान कर उसका ठीकरा किसानों पर फोड़ना था।