केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में देश के कई राज्यों के किसान दिल्ली क सीमा पर पांच महीने से ज्यादा समय से धरने पर बैठे हैं। हालांकि 26 जनवरी के बाद से आंदोलन की धार कमजोर हुई है और कोरोना वायरस की मार ने आंदोलन को कमजोर किया है। आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने अपनी सभाओं में भाजपा को हराने की अपील की थी। राकेश टिकैत से लेकर योगेंद्र यादव तक ने सभा की थी और कहा था कि भाजपा बंगाल में हारेगी तभी दिल्ली में किसानों की बात सुनेगी। तब माना जा रहा था कि बंगाल में हार जाने के बाद शायद सरकार सचमुच किसानों की बात सुने, लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है।
असल में इसका उलटा हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने भी किसानों के बंगाल जाकर प्रचार करने और भाजपा को हराने की अपील करने को गंभीरता से लिया है। वे इस बात से नाराज हुए हैं कि सरकार के एक फैसले को लेकर किसानों ने इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया और कहा कि बंगाल में भाजपा हारेगी तो किसानों की बात सुनी जाएगी। ऐसा लग रहा है कि अब सरकार ने जिद ठान ली है कि हार गए तब भी किसानों की बात नहीं सुनेंगे। यही कारण है कि सरकार और किसानों के बीच गतिरोध खत्म नहीं हो रहा है। एक तरफ सरकार चुपचाप बैठी है तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी की रिपोर्ट आ जाने के बाद भी सर्वोच्च अदालत में कोई पहल नहीं हो रही है। हालांकि किसान अब भी अड़े हैं और जरूरत होने पर पंजाब, हरियाणा से और किसान दिल्ली पहुंचेंगे, लेकिन सरकार के साथ गतिरोध आसानी से खत्म नहीं होने वाला है।
किसानों की बात नहीं सुन रही सरकार
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