भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सरकार में होने का भरपूर फायदा उठा रही है। उसकी सरकार पांच राज्यों में चल रहे चुनाव को प्रभावित करने वाले हर संभव फैसले कर रही है। हालांकि ये फैसले भाजपा या उसकी सहयोगियों को कितना वोट दिला पाएंगे, यह नहीं कहा जा सकता है। जैसे केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में मतदान से पांच दिन पहले दादा साहेब फाल्के फिल्म पुरस्कार का ऐलान किया है। तमिल फिल्मों के सुपर सितारे रजनीकांत को यह पुरस्कार दिया गया। रजनीकांत निःसंदेह इस पुरस्कार के योग्य हैं पर चुनाव से ठीक पहले उन्हें यह पुरस्कार देकर भाजपा ने उनकी योग्यता को संदिग्ध बना दिया। यह संदेश बना कि चुनावी फायदे के लिए भाजपा ने उन्हें यह सम्मान दिलाया है।
इससे कुछ ही दिन पहले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा की गई थी और सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने भाजपा को ‘कल्ट’ और नरेंद्र मोदी को ‘रेज’ बताने वाली घनघोर भाजपा समर्थक अभिनेत्री कंगना रनौत को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया। उसका भी मकसद तमिलनाडु में वोट प्रभावित करना था क्योंकि कंगना रनौत इन दिनों राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के जीवन पर बनी फिल्म ‘थलाइवी’ का प्रमोशन कर रही हैं, जल्दी ही फिल्म रिलीज होने वाली है। सो, भाजपा मान रही है कि उनके प्रमोशन से अन्ना डीएमके को फायदा होगा। सोचें, जहां भाजपा सिर्फ 20 सीटों पर लड़ रही है वहां के लिए यह रणनीति!
सरकार कहती है कि पेट्रोल-डीजल के दाम उसके नियंत्रण में नहीं हैं, बल्कि बाजार के नियंत्रण में है फिर क्यों अचानक पिछले करीब एक महीने से इनके दामों में बढ़ोतरी रूक गई, बल्कि दो दिन तो 18 पैसे और 21 पैसे की भारी कमी भी हुई! यह नोट करके रखें कि 29 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में आखिरी चरण के मतदान के दिन तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ेंगे और 29 अप्रैल को मतदान खत्म होने के बाद दाम बढ़ने से ईश्वर भी नहीं रोक पाएंगे। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ाने के बाद अचानक रोक कर सिर्फ यह प्रयास किया गया है कि ऐन चुनाव प्रचार के बीच इनकी कीमतों का मुद्दा नहीं बने। हैरानी की बात है कि भाजपा को इसमें सफलता भी मिल रही है। पेट्रोल के दाम एक सौ रुपए से ऊपर हैं लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं है।
छोटी बचतों पर ब्याज दर बढ़ाने की घोषणा और अचानक उसे वापस ले लेने का फैसला भी संयोग नहीं था, बल्कि चुनावी प्रयोग था। वित्त मंत्री और इस सरकार के ज्यादातर मंत्रियों ने बहुत पहले तर्क, तथ्य, विचार आदि को तिलांजलि दे दी है इसलिए वित्त मंत्री को यह कहने में दिक्कत नहीं हुई कि आदेश गलती से जारी हो गया था। सरकार में गलती से कुछ भी नहीं होता है, खास कर राजस्व से जुड़ा मसला। जान-बूझकर पहले ब्याज घटाने की घोषणा हुई और फिर उसे मतदान के दिन सुबह सुबह वापस लिया गया। ध्यान रहे भारत में लघु बचत का 2017-18 का कुल जमा साढ़े पांच लाख करोड़ रुपए था, जिसमें से 90 हजार करोड़ रुपए अकेले पश्चिम बंगाल का था। इसलिए ब्याज दर घटाने और फिर फैसला वापस लेने का ड्रामा रचा गया।