Mamta Banerjee Opposition Parties ममता बनर्जी पांच दिन तक दिल्ली में विपक्ष को एकजुट करने की राजनीति करके लौट गई हैं। उन्होंने पांच दिन तक दिल्ली में जो मेल-मुलाकात की उसका लब्बोलुआब यह था कि वे भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक मोर्चा बनाना चाहती हैं, जिसमें सभी विपक्षी पार्टियों को लाना उनका मकसद है। लेकिन सवाल है कि इसमें वे अपने लिए क्या भूमिका देख रही हैं? वे इस गठबंधन में क्या करेंगी? क्या वे गठबंधन का नेतृत्व करना चाहती हैं या अगले चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा बनना चाहती हैं?
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उनके दिल्ली से लौटने से पहले ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का पुनर्गठन होगा और ममता बनर्जी की पार्टी उसमें शामिल होगी। गौरतलब है कि ममता यूपीए-दो की सरकार में मंत्री थीं और 2011 में उनके मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय के बाद उनकी पार्टी यूपीए से बाहर हुई थी। इसलिए यह स्वाभाविक लगता है कि यूपीए का पुनर्गठन हो और वे उसमें वापस लौटें। आखिर शिव सेना के नेता संजय राउत ने भी यूपीए को डिफंक्ट बता कर नए गठबंधन की जरूरत बताई है।
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सो, यह चर्चा है कि ममता यूपीए की अध्यक्ष या संयोजक बन सकती हैं। हालांकि वे अभी इससे मना कर रही हैं पर यह तभी संभव है, जब सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति छोड़ दें। कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि इस प्रस्ताव पर विचार हो सकता है। राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन जाएं और तृणमूल कांग्रेस यूपीए में शामिल हो जाए, जिसके बाद ममता को यूपीए का अध्यक्ष या संयोजक बना दिया जाए।
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अगर गांधी परिवार सिर्फ कांग्रेस की कमान संभाले और यूपीए की कमान ममता को मिल जाए तो वे दूसरी कई पार्टियों को इसमें ला सकती हैं। वे जगन मोहन रेड्डी को इस गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार कर सकती हैं। इस बार की दिल्ली यात्रा में ममता बनर्जी की जिन चंद विपक्षी नेताओं से मुलाकात नहीं हुई उनमें समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव हैं। अगली यात्रा में ममता उनसे मिलेंगी और अगर विपक्षी गठबंधन की कमान ममता संभालती हैं तो अखिलेश को उसमें शामिल होने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
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लेकिन अगर ममता बनर्जी यूपीए में शामिल नहीं होती हैं या कांग्रेस के नेता उनको यूपीए का प्रमुख बनाने को राजी नहीं होते हैं तो क्या होगा? क्या फिर ममता बनर्जी, जैसा कि उन्होंने खुद कहा है, एक कैडर की तरह विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में लगी रहेंगी? कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर भी उनकी केंद्रीय भूमिका बनाने का प्रयास में लगे हैं। वे अगर कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं तो कांग्रेस को इस बात के लिए तैयार कर सकते हैं कि ममता को विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनाया जाए। चेहरा बनाने का मतलब यह नहीं है कि उनको प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जाएगा। उसका फैसला तो चुनाव के बाद ही होगा, अगर स्थितियां बनती हैं।
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ममता की असल भूमिका क्या होगी?
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