संशोधित नागरिकता कानून, सीएए पर चुनौती देने का दौर चल रहा है। सोशल मीडिया में तो चल ही रहा है नेता लोग भी एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर वाद विवाद की प्रतियोगिता छिड़ी है। हैरानी की बात यह है कि सब एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं कोई किसी की चुनौती स्वीकार नहीं कर रहा है। सब यह साबित करने में लगे हैं कि दूसरे को इसके बारे में जानकारी नहीं है या जानकारी है तो वह देश को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हर जगह तीन लोगों को चुनौती दे रहे हैं। वे समूचे विपक्ष की बजाय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे रहे हैं कि वे उनसे नागरिकता कानून पर बहस करें। हैरानी की बात है कि इसका सबसे तीखा विरोध असम में हो रहा है, ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, आसू ने इसके खिलाफ मोर्चा खोला था, पर अमित शाह आसू के नेताओं को चुनौती नहीं दे रहे हैं। केरल में जहां सबसे पहले सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास हुआ वहां के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को भी अमित शाह चुनौती नहीं दे रहे हैं।
समझना मुश्किल नहीं है कि राहुल, ममता और केजरीवाल को चुनौती देने का मकसद क्या है। राहुल हमेशा भाजपा के लिए पंचिंग बैग रहे हैं। उनको विपक्ष का प्रतिनिधि बना कर उनको निशाना बनाया जा रहा है। केजरीवाल को चुनौती इसलिए दी जा रही है कि ताकि वे उत्तेजित होकर कुछ बयान दें। ध्यान रहे दिल्ली में अभी विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और भाजपा के लाख प्रयास के बावजूद नागरिकता कानून का मुद्दा नहीं बन पा रहा है। ममता को चुनौती इसलिए दी जा रही है क्योंकि अगले साल वहां विधानसभा चुनाव हैं, जहां भाजपा अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है।
बहरहाल, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमित शाह की बहस की चुनौती स्वीकार नहीं की। भाजपा के नए बने अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस चुनौती को थोड़ा बदल कर कहा कि राहुल गांधी नागरिकता कानून के बारे में दस लाइन बोल कर दिखाएं। यह एक नया चैलेंज है। पर इस बीच कांग्रेस के नेता और सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को चुनौती दी है कि वे उनके साथ नागरिकता कानून पर बहस करें। सिब्बल को भी इतना आक्रामक इसलिए होना पड़ा क्योंकि सीएए को लेकर राज्य सरकारों के अधिकार पर सवाल उठा कर वे कठघरे में आए हैं इसलिए आगे बढ़ कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं।
सीएए पर चुनौती देने का दौर
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