सरकार लॉकडाउन के बारे में चाहे जो फैसला करे पर वह फैसला मेडिकल ग्राउंड पर ही होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना सबसे जरूरी है कि सरकार किसी भी दूसरे आधार पर या दूसरी मजबूरी में लॉकडाउन हटाने का फैसला न करे। ध्यान रहे इन दिनों आर्थिकी की दुहाई देकर कामकाज चालू करनी की वकालत करने वालों की अचानक भीड़ बढ़ गई है। इनमें से कई तो आर्थिकी के नीम हकीम हैं पर जोर देकर यह बात कह रहे हैं कि अगर लॉकडाउन थोड़े समय और चला तो देश की अर्थव्यवस्था बहुत पीछे चली जाएगी और कई महीने लग जाएंगे आर्थिकी को संभालने में। ऐसे आकलन के आधार पर सरकार को फैसला नहीं करना चाहिए।
सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी क्या कह रहे हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण की क्या स्थिति रहती है। अगर हो सके तो सरकार इस बात का आकलन कराए कि भारत में किस राज्य में, कब तक सबसे ज्यादा मामले आएंगे, किस इलाके में कैसा हॉटस्पॉट बन रहा है। लॉकडाउन खोलने पर वायरस के फैलने की संभावना कितनी है। इन सब सवालो के जवाब के आधार पर ही सरकार को फैसला करना है।
ध्यान रहे भारत की जीडीपी डेढ़ सौ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है। ऐसे में अगर दस फीसदी तक भी जीडीपी का नुकसान होता है तो सरकार को बाद में आर्थिकी संभालने में मुश्किल नहीं आएगी। लेकिन अगर आर्थिकी की चिंता में लॉकडाउन खोला गया तो न सिर्फ संक्रमण बढ़ेगा और लोगों की मौत होगी, बल्कि आर्थिकी पर भी बहुत बुरा असर होगा। क्योंकि अगर संक्रमण बढ़ता है तो सरकार को मेडिकल सेवाओं पर ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और आम लोगों को भी राहत देने के लिए ज्यादा बड़ा पैकेज देना होगा।
फैसला मेडिकल ग्राउंड पर ही हो
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