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बिहार और महाराष्ट्र की सूची का फर्क

ByNI Political,
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बिहार और महाराष्ट्र की सूची का फर्क
बिहार में विधान परिषद के लिए 12 सदस्यों के मनोनयन को राज्यपाल ने 24 घंटे में मंजूरी दी, जबकि महाराष्ट्र के 12 सदस्यों के मनोनयन की सिफारिश साढ़े चार महीने से लंबित है। अगर दोनों राज्य सरकारों की ओर से भेजी गई सिफारिश को देखेंगे तो एक और फर्क दिखाई देगा। बिहार में जदयू और भाजपा की सरकार ने जिन 12 लोगों को मनोनीत कराया है वे सभी हार्डकोर राजनेता हैं। उनमें से किसी का भी कला, संस्कृति, खेल-कूद यानी गैर राजनीतिक रचनात्मक गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है। जदयू-भाजपा ने सरकार की जो सूची राज्यपाल ने मंजूर की है। उसमें अशोक चौधरी और जनक राम अभी राज्य सरकार में मंत्री हैं। उपेंद्र कुशवाहा जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। भाजपा और जदयू दोनों प्रदेश कार्यालय के प्रभारियों का नाम भी इस सूची में है तो जदयू के एक प्रवक्ता का भी नाम है। बाकी नाम भी नेताओं के ही हैं। इसके उलट महाराष्ट्र में कला, संस्कृति, फिल्म, साहित्य आदि से जुड़े लोगों के नाम की भी सिफारिश की गई है। वहां की सूची में भी कई नेता हैं पर एक संतुलन भी है। जैसे शिव सेना ने हिंदी फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का नाम भेजा है तो नितिन बानगुडे पाटिल का भी नाम भेजा है, जो नामी मोटिवेशनल स्पीकर हैं। कांग्रेस ने अनिरूद्ध वानकर का नाम भेजा है, जो मराठी के जाने-माने गायक और कलाकार हैं। इसी तरह एनसीपी ने आनंद शिंदे का  नाम भेजा है, जो मराठी के जाने-माने लोक गायक हैं। एनसीपी ने मशहूर किसान नेता राजू शेट्टी का भी नाम भेजा है। इस तरह शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस ने अपने अपने कोटे की चार-चार सीटों में नेता और अन्य क्षेत्र के विख्यात लोगों का संतुलन बना कर भेजा है। फिर भी सिफारिश रूकी हुई है और बिहार में 12 नेताओं के नाम की मंजूरी 24 घंटे में हुई।
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