देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानी एम्स का सर्वर हैक होना मामूली बात नहीं है। देश और इसकी एजेंसियां इस बात को संतोष नहीं कर सकती हैं कि पांच दिन में ही सर्वर को फिर से रिस्टोर कर दिया गया। हालांकि पांच दिन बाद भी एम्स के सर्वर की सफाई चल रही है और काम मैनुअल हो रहा है। इससे हजारों मरीजों और उनके परिजनों को जो समस्या हुई वह अपनी जगह है लेकिन इससे देश की पूरी डिजिटल व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े हुए हैं। हर जगह आम लोगों का संवेदनशील डाटा स्टोर किया जा रहा है। छोटी छोटी चीजों के लिए नागरिकों से डाटा लिया जा रहा है। आधार में उनका बायोमेट्रिक डाटा स्टोर किया हुआ है।
इसलिए सरकार को सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि सर्वर किसने हैक किया और उसने कितना डाटा चुराया। खबरों के मुताबिक तीन से चार करोड़ लोगों का डाटा चुराया गया है। अगर यह सही है तो नागरिकों की निजता और सुरक्षा के साथ साथ देश की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। ध्यान रहे भारत में साइबर सिक्योरिटी को लेकर कोई कानून नहीं है। प्रधानमंत्री ने दो साल पहले इसकी घोषणा की थी लेकिन अभी तक कानून नहीं बन पाया है। निजता का कानून भी भारत में दूसरे सभ्य देशों के मुकाबले बहुत सख्त नहीं है। सोचें, एक तरफ सरकार पूरी अर्थव्यवस्था और प्रशासिनक व्यवस्था को डिजिटल बना रही है और दूसरी ओर डिजिटल डाटा की सुरक्षा की ऐसी स्थिति है कि एम्स जैसे संस्थान का सर्वर हैक कर लिया जाता है और डाटा चोरी हो जाता है। इस बारे में सरकार और तमाम सुरक्षा एजेंसियों को भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है।