सबको पता था कि चुनाव आयोग अगर अकेले हिमाचल प्रदेश के चुनाव की घोषणा करेगा और गुजरात की घोषणा नहीं की जाएगी तो सवाल उठेंगे। तभी ऐसी प्लानिंग की गई, जिससे लगे कि आयोग की घोषणा चौंकाने वाली है और किसी को पता नहीं था कि आयोग कब चुनाव की घोषणा करने वाला है। इसके लिए 16 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धर्मशाला में रैली के आयोजन की घोषणा हुई थी। सोचें, 13 अक्टूबर को प्रधानमंत्री ने कई जगह कार्यक्रम किए। सभाएं कीं, ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास किए और उसके अगले दिन आयोग ने चुनाव की घोषणा कर दी। फिर भी कहा जा रहा है कि आयोग ने प्रधानमंत्री के 16 अक्टूबर वाले कार्यक्रम का ध्यान नहीं रखा और इस आधार पर आयोग को तटस्थ और निरपेक्ष ठहराया जा रहा है।
लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? क्या सचमुच प्रधानमंत्री 16 अक्टूबर को रैली करने वाले थे और यह जानते हुए चुनाव आयोग ने दो दिन पहले चुनावों की घोषणा कर दी? इस पर शायद ही किसी को यकीन होगा। लेकिन दिखाया ऐसा ही गया है। पीएम की धर्मशाला रैली की पूरी तैयारियां हो रही थीं और वहां के चंबी मैदान को एसपीजी ने अपने नियंत्रण में ले लिया था। चुनावों की घोषणा के बाद एसपीजी की टीम वहां से हटी। सोचें, इतना प्रयास किया गया यह दिखाने के लिए कि चुनाव आयोग को सरकारी कार्यक्रम से मतलब नहीं है और उसने अपने हिसाब से तारीखों की घोषणा की। फिर भी विपक्षी पार्टियां और सोशल मीडिया में सक्रिय राजनीतिक विश्लेषक यह बात समझ गए कि गुजरात के चुनाव की घोषणा हिमाचल के साथ ही क्यों नहीं की गई।