दो राज्यों, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हुए चुनाव पर एक्जिट पोल का प्रसारण सोमवार को शाम पांच बजे से शुरू हुआ और सीटों का आंकड़ा सात बजे के बाद ही पता चला लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अपनी तैयारी पहले ही शुरू कर दी है। कांग्रेस को पता है कि गुजरात में क्या नतीजा आना है और दिल्ली नगर निगम में उसकी कैसी दुर्गति होनी है। लेकिन कांग्रेस के नेता हिमाचल प्रदेश को लेकर पूरे भरोसे में थे। अनौपचारिक बातचीत में भी कांग्रेस के नेताओं का मानना था कि हिमाचल में पार्टी 40 सीट जीतेगी। इसी वजह से मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं ने दिल्ली की दौड़ भी शुरू कर दी थी।
अब कांग्रेस चिंता में है और एक्जिट पोल के नतीजों ने उसकी चिंता बढ़ा दी है। तभी एक्जिट पोल के अनुमानों से पहले ही कांग्रेस ने दो दिग्गज नेताओं को हिमाचल प्रदेश का पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिया। पहले से राज्य में काम कर रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और हिमाचल से सटे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। ये दोनों नेता आठ दिसंबर को नतीजे आने से पहले ही शिमला जा सकते हैं ताकि अगर कांटे की टक्कर में कांग्रेस पिछड़ती है या बराबर सीटें आती हैं या कांग्रेस एकाध सीट पर आगे रहती है तो उस हिसाब से रणनीति बना कर वहां काम किया जा सके।
कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि जब पार्टी के नेता बहुत भरोसे में थे कि हिमाचल में जीत रहे हैं तब किसी ने उनको उत्तराखंड की याद दिलाई। वहां भी राज्य के नए और निराकार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की वजह से भरोसे में थे कि भाजपा हार रही है। धामी खुद हारे भी लेकिन पार्टी जीत गई। उसी तरह हिमाचल प्रदेश के निराकार मुख्यमंत्री और पार्टी के अंदर की खींचतान के कारण कांग्रेस के नेता भरोसे में थे। पर आगाह किए जाने के बाद पार्टी ने पर्यवेक्षक नियुक्त करने और हर स्थिति के लिए तैयारी रखने का फैसला किया।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस पहले हो चुकी गलतियों को दोहराना नहीं चाहती है। कांग्रेस नेपहले से तैयारी नहीं रखने की वजह से गोवा और मणिपुर में झटका खाया था। दोनों राज्यों में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और दोनों राज्यों में सत्ता से बहुत कम दूरी पर थी। इसके बावजूद वह सरकार नहीं बना पाई। गोवा में तो पार्टी यही तय नहीं कर पाई कि किसके नेतृत्व में सरकार बनाने का दावापेश किया जाए। हिमाचल प्रदेश में भी मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं। इसलिए पार्टी को अंदरखाने तय कर लेना होगा कि अगर कांग्रेस बहुमत के आंकड़े तक पहुंचती है तो किसकी कमान में सरकार बनाने का दावा पेश करना है। अगर उसमें देरी हुई तो नुकसान हो जाएगा। कांग्रेस ने अपने विधायकों को राज्य से बाहर निकाल कर दूसरी जगह ले जाने की तैयारी भी कर रही है।