
कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस से भाजपा ने 2014 में तालमेल तोड़ दिया था और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में जीत कर पहली बार सत्ता में आई थी। अब वहीं कुलदीप बिश्नोई 2024 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा उनसे तालमेल तोड़ कर सत्ता में आई थी तो उनको साथ लेने के बाद क्या होगा? हरियाणा के नेता इस बारे में कई गणित समझाएंगे लेकिन सबसे दिलचस्प यह है कि वे 2016 में कांग्रेस में जुड़े थे और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। भूपेंदर सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंदर हुड्डा अपने सबसे मजबूत गढ़ यानी सोनीपत और रोहतक में लोकसभा का चुनाव हार गए थे। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस जीत नहीं पाई थी। history of haryana and bishnoi
इसके उलट 2007 में अलग पार्टी बना कर कांग्रेस छोड़ने के बाद 2009 के चुनाव में कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता में आई थी। यानी कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस से अलग थे तो कांग्रेस जीत गई थी और वे कांग्रेस में शामिल हुए तो पार्टी हार गई। इसी तरह जब वे भाजपा से अलग हुए तो भाजपा जीत गई और अब वे भाजपा में शामिल हो गए हैं। सो, इतिहास दोहराने की अटकलें लगाई जा रही हैं। बहरहाल, बिश्नोई परिवार का गढ़ है हिसार जिला, जहां की आदमपुर सीट से आज तक उनका परिवार नहीं हारा है। उनके इस्तीफा देने के बाद बताया जा रहा है कि उस सीट से वे अपने बेटे भव्य बिश्नोई को भाजपा की टिकट से लड़ाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा ने उनको वहां से हराने का ऐलान किया है तो कुलदीप ने हुड्डा को आदमपुर सीट से लड़ने की चुनौती दी है।
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कुलदीप बिश्नोई और भाजपा के रिश्तों की एक और कहानी चर्चा में है। कुलदीप की पार्टी के साथ भाजपा ने 2011 में एक समझौता किया था, जिसके मुताबिक 2014 का चुनाव भाजपा कुलदीप के चेहरे पर लड़ने वाली थी और भाजपा को उनको मुख्यमंत्री बनाना था। तब के पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और प्रोफेसर गणेशी लाल की मौजूदगी में समझौता हुआ था। लेकिन 2014 में भाजपा ने समझौते को कूड़ेदान में डाल दिया था। अब फिर एक समझौता हुआ है, जिसके तहत कुलदीप को 2024 में हिसार लोकसभा सीट मिलेगी और उनके बेटे व पत्नी को एक-एक विधानसभा सीट मिलेगी।