प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पीएम-केयर्स नाम से एक फंड बनाया है, जिसमें हजारों करोड़ रुपए का चंदा मिला है। उसके पीछे की कानूनी जटिलताओं और उसके ऑडिट आदि को लेकर चल रहे विवाद में पड़ने की जरूरत नहीं है। उस फंड से सरकार ने दो योजनाओं की घोषणा की। पहली यह कि उस फंड का एक हजार करोड़ रुपया प्रवासी मजदूरों पर खर्च किया जाएगा और तीन हजार करोड़ रुपए मेडिकल सुविधा को बेहतर बनाने के लिए किए जाएंगे। इसमें भी मेडिकल सुविधा पर होने वाला खर्च लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया का हिस्सा है। इसलिए अपना फोकस प्रवासी मजदूरों के लिए आवंटित एक हजार करोड़ रुपए के खर्च पर है। आखिर सरकार इसे किस तरह से खर्च कर रही है?
यह बड़ा सवाल है कि पीएम-केयर्स फंड का हजार करोड़ रुपए प्रवासी मजदूरों पर किस तरह खर्च किया जा रहा है? क्या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो महीने तक प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन देने की साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए की जिस योजना की घोषणा 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में की है उसमें यह एक हजार करोड़ रुपया शामिल है? या भारतीय रेल प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाने के लिए चलाई जा रही स्पेशल ट्रेनों में 85 फीसदी सब्सिडी की जो बात कर रही है उसका भुगतान इस एक हजार करोड़ रुपए से किया जाएगा?
आखिर यह पैसा कैसे और कहां खर्च हो रहा है? प्रवासी मजदूरों की ज्यादातर मदद या तो राज्य सरकारें कर रही हैं या आम लोग अपने सीमित साधनों से कर रहे हैं। लोग रास्ते में उनके लिए खाने के पैकेट का बंदोबस्त कर रहे हैं, पानी, दूध, जूते-चप्पल आदि बांट रहे हैं और राज्य सरकारें बसों का बंदोबस्त कर रही हैं। कांग्रेस पार्टी भी बसों का बंदोबस्त कर रही है। ट्रेन के किराए का कंफ्यूजन अभी तक दूर नहीं हुआ है। कहीं केंद्र की सब्सिडी की चर्चा है तो कहीं कहा जा रहा है कि राज्य किराया दे रहे हैं तो जमीनी रिपोर्ट यह कहती है कि मजदूर किराया चुका रहे हैं या दलालों को पैसे दे रहे हैं। सो, यह पता नहीं चल पा रहा है कि पीएम-केयर्स का एक हजार करोड़ रुपए कैसे और कहां खर्च हो रहा है।
पीएम-केयर्स का फंड कैसे खर्च हो रहा है?
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