भारत सरकार ने देश की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ से अपील की है कि उन्हें महामारी के इस समय में लोगों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। ध्यान रहे भारत में पिछले दो दशक में गैर सरकारी संस्थाओं के कामकाज का बहुत शानदार इतिहास रहा है। उन्होंने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी एडवोकेसी और बिल्कुल जमीनी स्तर पर पहुंच के चलते समाज के लोगों को बहुत जागरूक किया। महिला और शिशु के स्वास्थ्य और स्वच्छता आदि के क्षेत्र में एनजीओ का काम अभूतपूर्व था। तभी उनको भारतीय लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ कहा जाने लगा था। लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद गैर सरकारी संस्थाओं पर जैस आफत आ गई। सरकार का एकमात्र काम एनजीओ बंद कराने, उनकी फंडिंग रोकने या रूकवाने, विदेशी अनुदान के लिए मिली एफसीआरए मंजूरी को रद्द कराने का हो गया।
सरकार ने कैसे एनजीओ का टेंटुआ दबाया इसे एक तथ्य से समझा जा सकता है। देश के अलग अलग हिस्सों में हजारों संस्थाएं हैं, जिनको विदेशी अनुदान के लिए एफसीआरए लाइसेंस मिली हुई है। सबके अपने अपने राज्य या जिलों में बैंक खाते हैं, जिनमें अनुदान का पैसा आता है। लेकिन अब भारत सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि एनजीओ चाहे देश के किसी भी हिस्से का हो और कहीं भी काम करता हो उसे एफसीआरए अनुदान का खाता नई दिल्ली के संसद भवन मार्ग स्थित स्टेट बैंक की शाखा में ही खोलना है। इसमें भी कागजी कार्रवाई इतनी बढ़ा दी गई है कि दूर-दराज के छोटे-छोटे एनजीए के खाते खुल ही नहीं पाएंगे। जानी-मानी पत्रकार सुचेता दलाल ने इस मामले में सिलसिलेवार ट्विट करके सरकार को आईना दिखाया है।
एनजीओ कैसे मदद कर पाएंगे?
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