भारत सरकार महामारी में फंसी हुई है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने भारत की स्थिति ब्राजील से भी बदतर कर दी है। केंद्र सरकार ने भले बिल्ली को देख कर कबूतर जैसे आंख बंद करता है वैसे आंख बंद कर ली है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि खतरा नहीं है। खतरा भयावह है। कोरोना की दूसरी लहर ने भारत की दशा बुरी की है तो इसे रोकने के लिए लगाए जा रहे लॉकडाउन और कोरोना कर्फ्यू ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया है। तमाम एजेंसियों का आकलन है कि इस वर्ष की पहली तिमाही का हाल भी पिछले साल की पहली तिमाही जैसा होगा। हालांकि पिछली बार की तरह अर्थव्यवस्था माइनस 24 फीसदी नहीं रहेगी, लेकिन पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट होगी।
भारत की इस स्थिति को चीन ने भांप लिया है और उसने फिर अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। कुछ दिन पहले कोरोना वायरस की रिकवरी के समय ऐसा लग रहा था कि चीन भारत के साथ संबंध सुधार कर रहा है। दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की नौवें दौर की वार्ता के बाद चीन ने पैंगोंग झील के पास सेना की वापसी शुरू कर दी थी। लेकिन एक बार फिर उसने पीछे नहीं हटने की जिद ठान ली है। उसने साफ कर दिया है कि वह गोगरा, हॉट स्प्रिंग और देपसांग में पीछे नहीं हटेगा। उसकी ओर से यहां तक कहा जा रहा है कि भारत को जितना हासिल हो गया है उतने पर ही उसे खुश होना चाहिए। सोचें, भारत अपनी ही सीमा में पीछे हटा है और अपनी ही जमीन को बफर जोन में बदल दिया है, फिर भी चीन के तेवर नहीं बदलें हैं। तभी सवाल है कि अब भारत सरकार क्या करेगी? कोरोना और अर्थव्यवस्था के संकट के बीच चीन का संकट फिर शुरू हो गया है।
चीन के मोर्चे पर क्या करेगी सरकार?
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