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चीन की बदमाशी पर जवाब देने में देरी

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उसने तीसरी बार अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के नाम बदल दिए हैं। उसने अपने नक्शे में 11 जगहों के नाम तिब्बती या मैंडेरिन भाषा के रख दिए हैं। उसने इससे पहले छह और उससे पहले 15 जगहों के नाम बदले थे। सबसे हैरानी की बात है कि कुछ समय पहले ताशकंद में शंघाई सहयोग समिति यानी एससीओ की बैठक में चीन के प्रतिनिधिमंडल ने बदले हुए नाम के साथ अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए नक्शा बांटा। उस समय खबर आई थी कि वह नक्शा भारतीय प्रतिनिधिमंडल को भी मिला था। बहरहाल, भारत को पता है कि वह अरुणाचल के बारे में क्या सोच रखता है। इसके बावजूद भारत की प्रतिक्रिया बहुत सपाट, बिना किसी चेतावनी और फोर्स के होती है।

सबको पता है कि ग्लोबल डिप्लोमेसी में सबसे ज्यादा महत्व टाइमिंग का है। अगर रियल टाइम में जवाब नहीं दिया गया तो दूसरे पक्ष को परसेप्शन बनाने का मौका मिलता है। भारत हर बार इस मामले में मात खा जाता है। चीन ने सोमवार को अरुणाचल प्रदेश के 11 क्षेत्रों का नाम बदला और भारत की तरफ से पूरी तरह चुप्पी रही। मीडिया में खबर आ जाने के बाद भी चुप्पी रही। एक दिन बाद मंगलवार को भारत ने जवाब दिया। भारत का जवाब बेहद सपाट और लचर था। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया- हमारे सामने चीन की इस तरह की हरकतों की रिपोर्ट्स पहले भी आई हैं। हम इन नए नामों को सिरे से खारिज करते हैं। अरुणाचल प्रदेश भारत का आतंरिक हिस्सा था, हिस्सा है और रहेगा। इस तरह से नाम बदलने से हकीकत नहीं बदलेगी। क्या इस प्रतिक्रिया में कहीं गुस्सा, विरोध या सबक सिखा देने का भाव है? सोचें, चीन जैसा काम यदि पाकिस्तान ने कश्मीर के किसी हिस्से में किया होता तो सरकार की क्या प्रतिक्रिया होती और भाजपा नेताओं की क्या प्रतिक्रिया होती?

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