
यह बहुत हैरान करने वाली बात थी पर जिस समय लद्दाख में विवाद की जगह से चीन और भारत के सैनिक पीछे हटने लगे और भारत के टेलीविजन चैनलों ने यह दिखाना शुरू किया कि शेर की दहाड़ सुन कर ड्रैगन डरा, दुम दबा कर पीछे हटा, बिल में घुसा आदि उस समय भाजपा के प्रवक्ता इसका श्रेय लेने टेलीविजन चैनलों पर नहीं पहुंचे। क्या यह भी चीन के विदेश मंत्री के साथ हुई बातचीत में तय हुए फार्मूला का हिस्सा था कि भाजपा के प्रवक्ता चीन पर कथित जीत के उन्माद या उसके जश्न में शामिल नहीं होंगे? संभव है कि चीन की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए भाजपा के प्रवक्ताओं को दूर रखा गया हो। यहां तक कि सरकार की ओर से भी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई। सब कुछ सूत्रों के हवाले से बताया गया। वह भी सारे सूत्रों ने एक ही न्यूज एजेंसी को सब कुछ बताया!
कारण चाहे जो भी हो पर मंगलवार को भाजपा के प्रवक्ता टेलीविजन चैनलों की बहस में शामिल नहीं हुए। इसलिए सारा भार सेना के रिटायर अधिकारियों और एंकर्स पर आ गया था। लगभग सारे महिला-पुरुष एंकर भारत की जीत के उन्माद थे और देश को बता रहे थे कि कैसे भारत ने चीन को पीछे धकेल दिया। उनके हिसाब से ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। सेना के कई रिटायर अधिकारी भी इसकी पुष्टि में लगे रहे। हालांकि कांग्रेस के प्रवक्ता जरूर इस पूरे मामले पर वस्तुनिष्ठ सवाल उठाते रहे लेकिन यह इस कदर देशभक्ति का मामला बन गया है कि वे ज्यादा बोलेंगे तो उनको देशद्रोही, गद्दार ठहरा दिया जाएगा। बहरहाल, भाजपा प्रवक्ताओं के टेलीविजन बहसों से दूर रहने से ऐसा लग रहा है कि इस पूरे समझौते में कोई बात ऐसी है, जो सामने नहीं आ रही है।