सुब्रह्मण्यम जयशंकर को समकालीन भारत के सबसे बेहतरीन विदेश सचिवों में से एक माना जाता है। जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर नरेंद्र मोदी ने उनको अपना विदेश मंत्री बनाया तो विरोधियों ने भी माना कि यह अच्छा कदम है। वे विदेश सेवा के अधिकारी हैं और विदेश सचिव रहने के बाद विदेश मंत्री बने हैं तो उनसे उम्मीद नहीं थी कि वे कोई भी ऐसा काम करेंगे, जो कूटनीतिक रूप से गलत हो या भारत के हितों को किसी भी रूप में नुकसान पहुंचाने वाला हो। पर उन्होंने अमेरिकी में एक बड़ी कूटनीतिक गलती की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ह्यूस्टन के हाउडी मोदी कार्यक्रम में ट्रंप के लिए चुनाव प्रचार करके जो गलती की थी जयशंकर ने उसी को आगे बढ़ाया है।
अमेरिका के साथ टू प्लस टू की वार्ता के लिए जयशंकर और राजनाथ सिंह अमेरिका गए थे। वहां इन दोनों की अमेरिकी विदेश और रक्षा मंत्रियों के साथ बैठक हुई। इस यात्रा के दौरान ही जयशंकर को अमेरिकी विदेश मंत्रालय की संसदीय समिति से भी मिलना था। पर उन्होंने इस समिति से मिलने से इनकार कर दिया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की संसदीय समिति की अध्यक्ष डेमोक्रेटिक पार्टी का है। चूंकि डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता प्रमिला जयपाल ने अमेरिकी संसद में भारत के नागरिकता कानून को लेकर एक प्रस्ताव रखा था इसलिए नाराजगी जाहिर करने के मकसद से जयशंकर ने मुलाकात टाल दी।
इस तरह उन्होंने दिखाया कि डेमोक्रेटिक पार्टी से भारत सरकार नाराज है। सवाल है कि किसी सांसद के किसी कदम की वजह से देशों के बीच कूटनीतिक संबंध कैसे प्रभावित हो सकते हैं? सारी संसदीय समितियां तो संसद की होती हैं और उनको मिनी संसद भी कहा जाता है। उसमें सभी पार्टियों के सांसद होते हैं, अध्यक्ष चाहे किसी भी पार्टी का हो। उसे नहीं मिलना बड़ी कूटनीतिक गलती थी। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी का राष्ट्रपति हमेशा के लिए नहीं चुना गया है और जिस दिन डेमोक्रेट सत्ता में आएंगे, उस दिन ऐसी बातों का असर दोनों देशों के संबंधों पर दिखाई देगा।