भारत की समकालीन राजनीति में कुछ स्थायी अटकलें हैं। जब भी राजनीति में बहुत कुछ नहीं घट रहा होता है तो इन अटकलों पर चर्चा शुरू हो जाती है। जैसे इन दिनों राजनीति के नाम पर देश में कुछ नहीं हो रहा है। संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, एनपीआर व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, एनआरसी के अलावा कोई दूसरा मुद्दा नहीं है। बजट की चर्चा भी कम है और मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा तो थम ही गई है। राज्यों में भी सिर्फ नागरिकता पर बहस है।
तभी भारतीय राजनीति की पुरानी अटकलें फिर शुरू हो गई हैं। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की सक्रियता ने कांग्रेस को राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बना दिया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेनका या वरुण गांधी को सरकार में शामिल नहीं किया है। सो, अब फिर से चर्चा है कि वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार की पहली फेरबदल में भी मेनका या वरुण गांधी को सरकार में नहीं लिया जाता है तो वरुण अपने आगे की रणनीति पर गंभीरता से विचार करेंगे। उनका अगला कदम क्या होगा, यह पिछले दस साल से चर्चा का विषय है। दस साल से कहा जा रहा है कि प्रियंका सक्रिय राजनीति में आएंगी तो वरुण भी कांग्रेस में जाएंगे। अगले कुछ दिन में इस कयास की सचाई का पता चलेगा।
पिछले दो दशक में दूसरा बड़ा कयास यह है कि शरद पवार अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में करेंगे। पिछले साल लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद इसकी चर्चा बहुत तेज हुई थी। सोनिया गांधी और शरद पवार की जैसी केमिस्ट्री दिखी उसके बाद इन अटकलों को बल मिला था। अब भी यह अटकल खत्म नहीं हुई है। उलटे यह चर्चा तेज हो गई है कि पवार और कांग्रेस छोड़ कर गए दूसरे नेताओं की कांग्रेस में वापसी होगी। मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर पिछले कुछ समय से लगातार अटकल लगाई जा रही है कि वे पार्टी छोड़ सकते हैं। इस की भी परीक्षा राज्यसभा चुनाव के उम्मीदवारों की घोषणा के साथ हो जाएगी।
दिल्ली में एक अटकल पिछले छह साल से चल रही है। वह है कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के तालमेल की। दिल्ली कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग भाजपा को रोकने के लिए आप का समर्थन करना चाहता है। छह साल पहले जब दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा बनी थी तब कांग्रेस ने समर्थन देकर आप की सरकार बनवाई थी। हालांति वह सरकार 49 दिन ही चली पर तब से यह अटकल स्थायी है कि कांग्रेस कभी भी आप का समर्थन कर सकती है। इस समय भले दोनों पार्टियां अलग लड़ रही हैं पर चुनाव के बाद क्या होगा कोई नहीं कह सकता है।
भारतीय राजनीति की कुछ स्थायी अटकलें
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