प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी कांग्रेस के वंशवाद को बड़ा मुद्दा बनाते रहे हैं। उनके लिए वंशवाद का मतलब गांधी-नेहरू परिवार है, जिसकी पांचवीं पीढ़ी के राहुल और प्रियंका राजनीति कर रहे हैं। इनके अलावा पांच पीढ़ी से राजनीति करने वाले परिवार गिने-चुने हैं। पिछले तीन-चार दशक में देश में जो प्रादेशिक क्षत्रप उभरे और उनकी दूसरी पीढ़ी इस समय सक्रिय है। उन्हीं में कुछ परिवारों की दूसरी और कुछ की तीसरी पीढ़ी अब राजनीति में आ गई है और सफल हो गई है। तमाम विरोध और दुष्प्रचार के बावजूद इस इस पीढ़ी ने अपने लिए जगह बनाई है और तमाम बड़े नेताओं के लिए चुनौती बन रहे हैं।
इसमें सबसे पहले ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का नाम लिया जा सकता है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के अलावा दूसरा सबसे बड़ा टारगेट अभिषेक बनर्जी थे। प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री तक ने उनको निशाना बनाया। उनकी पत्नी और ससुराल वालों से सीबीआई ने पूछताछ की। लेकिन अभिषेक बनर्जी चुनाव मैदान में डटे रहे और भाजपा व उसके शीर्ष नेताओं पर सीधा हमला करते रहे। पश्चिम बंगाल में ममता की तीसरी बार की जीत ने अभिषेक बनर्जी यानी एबी का कद बहुत बड़ा कर दिया है। वे अब स्वाभाविक दावेदार बन गए हैं।
इसी तरह महाराष्ट्र में बाल ठाकरे की तीसरी पीढ़ी के आदित्य ठाकरे की मिसाल दी जा सकती है। आदित्य के खिलाफ भी पूरी भाजपा प्रचार में लगी रही और भाजपा के लिए समर्पित मीडिया ने आदित्य ठाकरे को शिव सेना का राहुल गांधी कहा। भाजपा समर्थक एक बड़बोली अभिनेत्री के लिए वे बेबी पेंग्विन थे। लेकिन आदित्य ठाकरे आज महाराष्ट्र के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से हैं। ऐसे ही तमिलनाडु में करुणानिधि की तीसरी पीढ़ी के उदयनिधि स्टालिन ने अपना सिक्का जमाया है। स्टालिन के बेटे उदयनिधि खुद तो विधानसभा का चुनाव जीते ही है लेकिन पार्टी की जीत में भी उनका अहम योगदान है।