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क्या पंजाब का बिल मॉडल बिल है?

ByNI Political,
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क्या पंजाब का बिल मॉडल बिल है?
पंजाब सरकार ने केंद्र के कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए तीन नए प्रस्ताव विधानसभा से पास किए हैं और उसे राज्यपाल को दिया है। संविधान की व्यवस्था के मुताबिक केंद्र और राज्य के कानून में किसी किस्म का विवाद होने पर राज्य के कानून को राष्ट्रपति की भी मंजूरी लेनी होती है। जाहिर है कि मौजूदा समय में केंद्र सरकार के कानून के विरोध में पास किए गए किसी राज्य सरकार के कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना नामुमकिन की हद तक मुश्किल है। फिर भी पंजाब के साथ साथ कई राज्य सरकारें केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ अपने कानून पास करेंगी। अब सवाल है कि पंजाब ने इसमें पहल की है तो क्या पंजाब के कानून को बाकी सभी राज्यों के लिए मॉडल कानून माना जाएगा? कांग्रेस पार्टी ने पहले कहा था कि वह केंद्र के कृषि कानूनों की कमियों को हटा कर नए मॉडल कानून का मसौदा तैयार करेगी। कांग्रेस चाहती थी कि उसकी राज्य सरकारों के साथ साथ विपक्षी शासन वाले सारे राज्य उस मॉडल कानून को अपने यहां पास कराएं और राष्ट्रपति के भेजें। परंतु ऐसा होता नही दिख रहा है। कांग्रेस के शासन वाले राज्यों में भी राज्य सरकारें अपना अपना मसौदा तैयार कर रही हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने मसौदा तैयार कर लिया है और राज्यपाल  से विशेष सत्र बुलाने को कहा है। राज्यपाल एक बार सरकार की सिफारिश लौटा चुके हैं। लेकिन उनके सवालों का जवाब देकर राज्य सरकार ने वापस प्रस्ताव भेजा है। 27 अक्टूबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है। राजस्थान सरकार भी विशेष सत्र बुलाने की तैयारी कर रही है। असल में राज्यों का कहना है कि हर राज्य की स्थितियां अलग हैं और कृषि से जुड़े कानून अलग हैं। पंजाब में 90 फीसदी से ज्यादा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की सुविधा का लाभ मिलता है। इसलिए मंडियों से बाहर अनाज बिक्री की सुविधा दिए जाने का वहां सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। पंजाब के बाद हरियाणा में करीब 80 फीसदी किसानों को यह सुविधा मिलती है। पर बाकी देश के किसानों को एमएसपी की सुविधा का मामूली लाभ मिलता है। राज्यों में पहले से किसान अपनी फसल मंडियों से बाहर बेचते हैं। इसलिए उनको इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। इसलिए वे एमएसपी की व्यवस्था अनिवार्य करने का प्रावधान तो अपने कानून में कर सकते हैं पर ज्यादा फोकस कांट्रैक्ट फार्मिंग और आवश्यक वस्तु कानून में बदलाव पर रहेगा। ध्यान रहे केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु कानून में बदलाव करके दाल, तेल, फल, सब्जियों को इससे बाहर कर दिया है। इसका मतलब है कि कारोबारी कितनी भी मात्रा में इनका भंडारण कर सकता है। इससे कालाबाजारी बढ़ेगी, खाद्य सुरक्षा खतरे में आएगी और कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी होगी। इसका असर दिखना शुरू भी हो गया है।
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