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आईटीबीपी की झड़प क्यों छिपाई गई?

ByNI Political,
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आईटीबीपी की झड़प क्यों छिपाई गई?
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर गृह मंत्रालय की ओर से दिए जाने वाले वीरता पुरस्कारों का ऐलान हुआ तो उसमें इंडो तिब्बत बोर्डर पुलिस, आईटीबीपी के 21 जवानों का नाम गैलेंटरी अवार्ड के लिए प्रस्तावित किया गया। यह खबर आने के बाद आईटीबीपी ने अपनी ओर से जारी बयान में कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ चल रहे तनाव में आईटीबीपी के जवानों की कई बार चीनी सैनिकों से झड़प हुई। आईटीबीपी ने बताया कि मई और जून में 17 से 20 घंटे तक उसके जवानों की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, पीएलए के जवानों से झड़प चली। ध्यान रहे जून में 15 जून की रात को बिहार रेजिमेंट के जवानों के साथ पीएलए की हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें एक कर्नल सहित भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। उस झड़प की जानकारी पूरे देश को हुई पर आईटीबीपी के जवानों ने कई बार में 20 घंटे तक झड़प की उसकी जानकारी नहीं दी गई। जाहिर है कि मई-जून में तनाव सबसे ज्यादा था और उसी समय यह झड़प हुई है। इसकी जानकारी नहीं देने का मकसद क्या इस बात को स्थापित करना था कि चीनी सेना कोई घुसपैठ नहीं कर रही है और सीमा पर यथास्थिति है? तभी आईटीबीपी के जवानों को वीरता पुरस्कार दिए जाने की खबरों और झड़प का खुलासा होने के बाद कई सामरिक और रणनीतिक जानकारों ने कहा है कि अगर भारत सरकार ने उस समय चीन की आक्रामकता की खबरों को छिपाया नहीं होता और सेना को उनसे निपटने की छूट दी होती तो चीन भारत की सीमा में घुस कर जमीन कब्जा नहीं कर पाता। चीनी घुसपैठ की खबर छिपाने की वजह से भारत की स्थिति कमजोर हुई।
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