भारतीय जनता पार्टी को झारखंड चुनाव के नतीजों को लेकर अच्छी फीडबैक नहीं मिल रही है। पार्टी के आला नेताओं को मुख्यमंत्री के पिछड़ने की खबर मिली है और यह भी फीडबैक है उसकी सीटें पिछली बार से कम हो रही हैं। तभी आखिरी दो चरण में भाजपा के शीर्ष नेताओं ने आक्रामक प्रचार की रणनीति अपनाई। खुल कर हिंदू-मुस्लिम के ध्रुवीकरण का कार्ड खेला गया। वैसे आखिरी दो चरण की 31 सीटों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मुद्दा पहले भी काम करता रहा है क्योंकि इस इलाके में कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है।
आखिरी चरण का मतदान 20 दिसंबर को होना है। उससे पहले 16 दिसंबर को चौथे चरण के मतदान के रोज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि चार महीने में अयोध्या में आसमान छूने वाला राममंदिर बन जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आए डेढ़ महीने होने जा रहे हैं और अभी तक केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट नहीं बना सकी है तो चार महीने में मंदिर कैसे बनेगा?
बहरहाल, झारखंड में प्रचार के लिए पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मंदिर के नाम पर वोट मांगा। उन्होंने भाजपा को वोट देने की अपील करते हुए कहा कि उन्हें वोट दें, जो अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक एक ईंट वहां पहुंचाएं। उन्होंने सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का श्रेय भाजपा को देते हुए कहा कि मंदिर बनवाने वाली पार्टी को वोट दें। आखिरी दो चरण में स्थिति ऐसी हो गई है कि भाजपा का कोई भी नेता पांच साल तक मुख्यमंत्री के कामकाज पर वोट नहीं मांग रहा है।
खुद प्रधानमंत्री ने 15 दिसंबर को झारखंड के दुमका में पार्टी की चुनावी रैली में हिंदू-मुसलमान का दांव चला। उन्होंने नागरिकता कानून का विरोध करने वालों को इशारों में मुस्लिम बताते हुए कहा कि इस कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों को उनको कपड़ों से पहचाना जा सकता है। प्रधानमंत्री यहां तक कह गए कि पाकिस्तानी मूल के लोग ही इस कानून का विरोध कर रहे हैं। जाहिर है कि सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण के लिए मुस्लिम पहनावे और पाकिस्तान में जन्मे लोगों की मिसाल दी गई।
असल में पहले तीन चरण में भाजपा का प्रदर्शन खराब होने की फीडबैक मिलने के बाद पार्टी के नेता बचे हुए दो चरणों में हालात संभालने में लगे। तभी खुल कर हिंदू, मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद और भारत-पाकिस्तान के नाम पर वोट मांगा गया। हैरानी की बात है कि छुटभैया नेताओं की बजाय पार्टी के सबसे बड़े और सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं ने इस आधार पर वोट मांगे। सवाल है कि इसके बावजूद अगर पार्टी का प्रदर्शन ठीक नहीं हुआ तो आगे क्या होगा? आगे क्या इससे भी बड़ा कोई मुद्दा लाया जाएगा?