कर्नाटक विधानसभा चुनाव का एक बड़ा संदेश यह है कि भाजपा अपने भक्त वोट नहीं गंवाती। चुनाव हार जाती है तब भी उसका वोट बना रहता है। यह भी संदेश है कि कर्नाटक में मतदाताओं का एक बड़ा समूह ऐसा है, जो किसी नेता के प्रति नहीं, बल्कि पार्टी के प्रति निष्ठावान है। वह भाजपा को वोट करता है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार हैं। चुनाव से ऐन पहले भाजपा ने उनकी टिकट काटी और वे पाला बदल कर कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने उनको उनकी पारंपरिक हुबली धारवाड़ सीट से टिकट दिया। लेकिन वे चुनाव हार गए। यह इलाका भाजपा का पुराना गढ़ रहा है और इसे शेट्टार ने ही येदियुरप्पा के साथ मिल कर भाजपा का गढ़ बनाया था। जाहिर है वहां के मतदाता भाजपा के प्रति निष्ठावान हैं, शेट्टार के प्रति नहीं।
यह सिर्फ एक सीट की बात नहीं है। भाजपा को राज्य में 36 फीसदी वोट मिला है। पिछले चुनाव में उसको इतना ही वोट मिला था। वह 36 फीसदी वोट लेकर 104 सीट जीतने में कामयाब रही थी, जबकि 38 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस सिर्फ 80 सीट जीत पाई थी। इस बार कांग्रेस को 43 फीसदी के करीब वोट आया है लेकिन भाजपा का वोट बरकरार रहा है। सबसे बड़ा नुकसान जेडीएस को हुआ है। उसके वोट में पांच फीसदी की गिरावट आई है। यानी जेडीएस का वोट जितना घटा है कांग्रेस का उतना ही बढ़ा है। इसका मुख्य कारण तो यह है कि कांग्रेस ने सीएम का दावेदार नहीं घोषित किया था और वोक्कालिगा समुदाय के लोगों को लग रहा था कि शिवकुमार भी सीएम बन सकते है। दूसरा कारण यह था कि बजरंग दल पर पाबंदी लगाने की कांग्रेस की घोषणा के बाद मुस्लिम वोटों का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण में हुआ। पहले 25 से 30 फीसदी मुस्लिम वोट जेडीएस के साथ जाते थे, जो इस बार पूरी तरह से कांग्रेस के साथ गए।