प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक को लेकर उसी तरह चिंता में हैं, जैसे हिमाचल प्रदेश के लेकर थे। हिमाचल प्रदेश में बागियों को मनाने के लिए उन्होंने खुद फोन किया था। भाजपा के पुराने नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य कृपाल परमार से उन्होंने फोन पर बात की थी और चुनाव नहीं लड़ने को कहा था। हालांकि परमार ने उनकी बात नहीं मानी थी। लेकिन उससे प्रधानमंत्री की गंभीरता जाहिर हुई थी। वैसी ही गंभीरता कर्नाटक के मामले में भी दिखी है। प्रधानमंत्री इस बार किसी बागी को मनाने के लिए नहीं, बल्कि टिकट कटने और बेटे को टिकट नहीं मिलने के बावजूद पार्टी में बने रहे केएस ईश्वरप्पा को फोन किया। प्रधानमंत्री ने उनकी निष्ठा और समर्पण की तारीफ की। प्रधानमंत्री ने इससे पहले टिकट बंटवारे में भी दखल दिया और यह सुनिश्चित किया कि किसी एक व्यक्ति का दबदबा नहीं दिखे।
असल में प्रधानमंत्री मोदी को कर्नाटक में सरकार की उतनी चिंता नहीं है, जितनी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की चिंता है। सरकार तो 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भी कांग्रेस और जेडीएस की थी, लेकिन भाजपा ने राज्य की 28 में से 25 सीटें जीतीं और एक सीट भाजपा के प्रति सद्भाव रखने वाली सुमनलता अंबरीष ने निर्दलीय जीती थी। इस तरह राज्य की 28 में से 26 सीटें भाजपा के पास हैं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर इतनी सीटें जीते यह पहली प्राथमिकता है। और यह तभी संभव है, जब भाजपा के नेता एकजुट रहें और पार्टी का कोर वोट नहीं बिखरे।
इसी चिंता में प्रधानमंत्री ने बीएस येदियुरप्पा को पूरी तरह से किनारे करने के प्रस्ताव को खारिज किया। यह सही है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी लिंगायत हैं लेकिन अभी लिंगायतों में उनकी पकड़ वैसी नहीं है, जैसी येदियुरप्पा की है। इसलिए मुख्यमंत्री पद से हटाए गए येदियुरप्पा को पहले भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया और फिर उनकी पारंपरिक सीट पर उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को टिकट दिया गया। लिंगायत बहुल इलाकों में टिकटों के बंटवारे में येदियुरप्पा की बात सुनी गई और उनकी पसंद से टिकट दिया गया।
बताया जा रहा है कि टिकटों का अंतिम फैसला करने के लिए भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की जो बैठक हुई थी उसमें हर सीट पर तीन नाम का पैनल नहीं पेश किया गया था। कई सीटों पर सिर्फ एक ही नाम थे, जिससे येदियुरप्पा नाराज हुए। यह भी कहा जा रहा है कि ऐसा भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की वजह से हुआ। बहरहाल, येदियुरप्पा की नाराजगी दूर करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा की सूची रूकवा दी। यह संभवतः पहली बार हुआ, जब चुनाव समिति की बैठक के बाद भाजपा की सूची नहीं आई। तीन दिन के बाद येदियुरप्पा के पसंद के लोगों के नाम शामिल करके तब पहली सूची जारी हुई।