भारतीय जनता पार्टी के पुराने और बचे खुचे क्षत्रपों की नजर कर्नाटक के विधानसभा चुनाव पर है। उनकी किस्मत का फैसला बहुत कुछ कर्नाटक के नतीजों से होगा। भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर गुजरात फॉर्मूला लागू होगा या नहीं इसका फैसला कर्नाटक से होना है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि कर्नाटक भाजपा के लिए एक बड़ा प्रयोग है। बीएस येदियुरप्पा को हटा कर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाना और उनकी कमान में चुनाव लड़ने उतरना एक बड़ा दांव है, जिसकी सफलता से भाजपा की राजनीति में बहुत कुछ तय होगा।
ध्यान रहे एक समय था, जब बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक विधानसभा में भाजपा के अकेले विधायक होते थे। उनकी मेहनत और लिंगायत वोट पर उनकी पकड़ से भाजपा 2008 में पहली बार अल्पमत सरकार बनाने में कामयाब हुई, जिसे बाद में येदियुरप्पा ने अपनी काबिलियत से बहुमत की सरकार में बदला। दोबारा भी भाजपा 2019 में सत्ता में आई तो वह भी येदियुरप्पा के दांवपेंच से। लेकिन अब वे मुकाबले में नहीं हैं। वे इस बार विधानसभा का चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। उनकी जगह बसवराज बोम्मई चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका नाम सीएम दावेदार के तौर पर घोषित नहीं किया गया है लेकिन उन्हें गद्दी पर बैठा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा मोदी के चेहरे पर कर्नाटक में लड़ रही है।
यह पहली बार हो रहा है कि कर्नाटक का विधानसभा चुनाव भाजपा येदियुरप्पा की बजाय मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। अगर उनके चेहरे पर भाजपा जीतती है तो यह तमाम प्रादेशिक क्षत्रपों के लिए बड़े खतरे का संकेत होगा। इसका मतलब होगा कि भाजपा को किसी भी राज्य में जीतने के लिए किसी खास क्षत्रप की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर भाजपा कर्नाटक में चुनाव नहीं जीत पाती है तो इस साल हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में होने वाले चुनावों में भाजपा के प्रादेशिक क्षत्रपों की पूछ और ताकत बढ़ेगी। फिर गुजरात मॉडल पर अमल कुछ दिन और टलेगा।
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की भाजपा में जो प्रादेशिक क्षत्रप पैदा हुए थे उनमें सबसे मुश्किल काम को येदियुरप्पा ने पूरा किया था। उन्होंने दक्षिण में भारत के पैर रखने की जगह बनाई थी। उनके अलावा गुजरात में नरेंद्र मोदी, राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह पार्टी के बड़े क्षत्रप नेता थे। येदियुरप्पा के नेपथ्य में जाने के बाद अब वसुंधरा, शिवराज और रमन बचे हैं। इन तीनों के राज्यों में इस साल चुनाव हैं। अगर भाजपा येदियुरप्पा के बगैर कर्नाटक का चुनाव जीत जाती है तो वह बाकी तीन राज्यों में भी जोखिम लेने की स्थिति में होगी। लेकिन अगर हार जाती है तो फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तीनों पुराने क्षत्रपों को कमान मिलेगी।