भारतीय जनता पार्टी के लिए नई सदी के शुरुआती साल बहुत शानदार रहे थे। उसी समय केंद्र में भाजपा की सरकार थी। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की त्रिमूर्ति केंद्र में सरकार चला रही थी और राज्यों में बड़े क्षत्रप नेता तैयार हो रहे थे। तब गुजरात में नरेंद्र मोदी, राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में उमा भारती व शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, महाराष्ट्र में प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे आदि का जलवा बना था। इन क्षत्रपों में से एक रहे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्यों के सारे क्षत्रप नेता हाशिए पर चले गए या समाप्त हो गए।
बीएस येदियुरप्पा इकलौते क्षत्रप हैं, जिन्होंने आज भी अपनी ताकत बना रखी है और पार्टी उनकी अनदेखी करके राज्य का कोई भी फैसला नहीं कर सकती है। आज किसी भी दूसरे नेता की यह हैसियत नहीं है। उनकी तरह ही हैसियत कुछ कुछ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की है। सोचें, येदियुरप्पा की यह हैसियत इसके बावजूद है कि वे कर्नाटक में दो बार में महज पांच साल मुख्यमंत्री रह पाए हैं। पहली बार में उनको तीन साल बाद हटा दिया गया था और दूसरी बार भी दो साल बाद वे हट गए थे। जबकि रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान 15-15 साल तो वसुंधरा राजे 10 साल मुख्यमंत्री रहे हैं। योगी आदित्यनाथ भी साढ़े सात साल से देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन किसी क्षत्रप नेता की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह मोदी और अमित शाह पर दबाव डाल कर अपने मनमाफिक फैसला करा सके।