कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार को केंद्रीय एजेंसियों की जांच से राहत नहीं मिलने वाली है। शिवकुमार और उनके सांसद भाई डीके सुरेश को अगले साल मई में होने वाले विधानसभा चुनाव तक केंद्रीय एजेंसियां उलझाए रहेंगी और इसका कारण विशुद्ध रूप से राजनीतिक होगा। ध्यान रहे डीके शिवकुमार को कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र माना जाता है। पार्टी उनके प्रबंधन के भरोसे चुनाव लड़ने वाली है। भले वे मुख्यमंत्री के घोषित दावेदार नहीं हैं लेकिन सबको पता है कि चुनाव वे ही लड़वाएंगे। लेकिन केंद्रीय एजेंसियां उनको राहत की सांस ही नहीं लेने देंगी। अभी नए सिरे से सीबीआई ने उनके कई परिसरों और संपत्तियों का दौरा किया और जांच पड़ताल की है।
सोचें, देश के और भी कई नेताओं के यहां केंद्रीय एजेंसयों की जांच चल रही है। लेकिन किसी नेता के यहां जांच इतनी लंबी नहीं चली होगी, जितनी शिवकुमार के यहां चली है। उनके यहां पिछले पांच साल से जांच ही चल रही है। आमतौर पर एजेंसियों की छापेमारी के बाद थोड़े दिन जांच और पूछताछ चलती है और फिर आरोपपत्र दाखिल हो जाता है, जिसके बाद अदालती कार्रवाई चलती है। लेकिन शिवकुमार के मामले में ऐसा नहीं है। उनके यहां 2017 में आय कर विभाग का छापा पड़ा था, जब वे सिद्धरमैया सरकार में मंत्री थे। उसके तीन साल बाद अक्टूबर 2020 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय ने भी अपनी जांच शुरू की और अभी तक एजेंसियों की जांच चल रही है। इस हफ्ते सोमवार को सीबआई की टीम ने बेंगलुरू में उनके कई परिसरों में जाकर जांच की। अब भी उनको एक नियमित अंतराल पर पूछताछ के लिए बुलाया जाता है। कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि मई में होने वाले विधानसभा चुनाव तक इस तरह की जांच और पूछताछ चलती रहेगी।