कर्नाटक विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे भाजपा का हल्ला बढ़ता जा रहा है, जबकि उसी अनुपात में कांग्रेस का शोर थमता जा रहा है। सवाल है कि कांग्रेस ने कैसे इस तरह से अपना चुनाव प्रचार प्लान किया कि आखिरी दिनों में बड़े नेताओं का प्रचार नहीं हो रहा है? राहुल गांधी की आखिरी चुनावी सभा दो मई को हुई, उसके बाद छह मई तक वे प्रचार के लिए नहीं गए। पता नहीं दिल्ली में वे क्या करते रहे? शुक्रवार को जरूर यह सुनने में आया कि वे दिल्ली यूनिवर्सिटी गए थे और पीजी मेन्स हॉस्टल में यूनिवर्सिटी के छात्रों से मिले और उनके साथ खाना खाया। क्या यह काम उनको कर्नाटक की किसी यूनिवर्सिटी में जाकर नहीं करना चाहिए था?
इसी तरह प्रियंका गांधी वाड्रा की आखिरी रैली भी दो मई को हुई और उसके बाद वे छुट्टी मनाने राजस्थान के रणथंभौर चली गईं। कांग्रेस के दोनों स्टार प्रचारकों के ऐन मतदान से पहले छुट्टी पर जाने के बाद सोनिया गांधी कर्नाटक पहुंचीं और उन्होंने हुबली में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। चार साल के बाद वे किसी चुनाव प्रचार में उतरी थीं तो इसका माहौल बना लेकिन उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रोड शो भारी पड़ा। कांग्रेस नेताओं के प्रचार से छुट्टी लेने के मुकाबले भाजपा के प्रचार को देखें तो फर्क पता चलेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने एक तरह से कर्नाटक में डेरा डाला है। शुक्रवार से रविवार तक तीन दिन लगातार उनके कार्यक्रम लगे। उन्होंने शुक्रवार और शनिवार को छह चुनावी रैलियों को संबोधित किया और एक रोड शो किया। रविवार को वे तीन सभा करेंगे और बेंगलुरू में रोड शो करेंगे। वे बजरंग बली से लेकर ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म तक का मुद्दा बना रहे हैं और कांग्रेस के शीर्ष नेता आराम करते रहे।