इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि कर्नाटक में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा या त्रिशंकु विधानसभा बनेगी? ध्यान रहे कर्नाटक में 2004 से लेकर अभी तक सिर्फ एक चुनाव 2013 का रहा है, जब किसी पार्टी को बहुमत मिला था। कांग्रेस को तब 122 सीटें मिल गई थीं। लेकिन उससे पहले 2004 और 2008 और फिर 2018 में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कर्नाटक चुनाव का यह भी एक तथ्य है कि हर पार्टी के पास अपना एक निश्चित वोट बैंक है, जो उसको वोट देता है, चाहे नतीजा कुछ भी हो। तभी यह आशंका बहुत जायज है कि कोई पार्टी बहुमत हासिल कर पाएगी या नहीं।
इसका जवाब इस पर निर्भर करेगा कि राज्य की छोटी पार्टियों को कितना वोट मिलता है। छोटी पार्टियों में कर्नाटक की एकमात्र मजबूत प्रादेशिक पार्टी जेडीएस भी शामिल है। उसके पास 15 से 20 फीसदी तक का एक वोट है। अगर वह वोट उसका मिलता है और उसकी सीटों की संख्या 30 के ऊपर जाती है तो फिर किसी भी पार्टी के लिए बहुमत हासिल करना मुश्किल है। इसी तरह बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं की पार्टी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष को कितना वोट मिलता है। इससे कई सीटों पर समीकरण बदलेगा। बहुजन समाज पार्टी ने पिछली बार एक सीट जीती थी इस बार उसके 120 उम्मीदवार लड़ रहे हैं। उसे मिलने वाले वोट का असर भी नतीजों पर पड़ेगा। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 168 सीटों पर लड़ रही है। हालांकि पार्टी ज्यादा मेहनत नहीं कर रही है फिर भी उसको मिलने वाले वोट का असर भी नतीजों पर होगा।